SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 142 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन का भाव साधक के अन्दर जागृत होता है और ईर्ष्याभाव समाप्त हो जाता है जिससे समता का विकास होता है। करुणाभावना करुणा भावना के अन्तर्गत साधक दूसरों के दुःख दूर करने को सदा तत्पर रहता है कारण कि संसार का प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है, दुःख के सभी प्रतिकूल हैं ।। ___अतः राजवातिककार आचार्य अकलंक ने करुणा की परिभाषा देते हुए बताया है कि दोनों पर अनुग्रह करना ही कारुण्य है। जो जीव दीनता से तथा शोक भय रोगादिक की पीड़ा से दुःखित हों, पीड़ित हों तथा वध (घात) एवं बंधन सहित रोके हुए हों अथवा अपने जीवन की वाञ्छा करते हुए कि 'कोई हमको बचाओ', ऐसौ दीन प्रार्थना करने वाले हों तथा क्षुधा, तृषा, खेद आदिक से पीड़ित हों तथा शीत, उष्णादि से पीड़ित हों, निर्दय पुरुषों द्वारा मारने के लिए रोके गए हों, उन दुःखी जीवों को देखने-सुनने से उनके दुःख दूर करने की कोशिश करना ही करुणा भावना है।' दोन, दुःखी, भयभीत और प्राणों की भीख चाहने वाले प्राणियों के दुःख को दूर करने की भावना होना ही कारुण्य है। यही करुणा भावना हैं ।' दूसरों के दुःख की अनुभूति करना, उनके दु:ख से द्रवित १. सब्वेपाणापिआउया, सुहसाया दुक्ख पडिकूला ॥ आचारांगसूत्र, १.२.३ २. दीनानुग्रहभावः कारुण्यम् । तत्त्वार्थवा० ७.११.३.५८.१६ ३. दैन्यशोकसमुत्त्रासरोगपीडादितात्मसु । बधबन्धनरुद्धेषु याचमानेष जीवितम् ॥ क्षुत्तृटश्रमाभिभूतेषु शीताचे व्यथितेषु च। अविरुद्ध षु निस्त्रिशैयात्यमानेषु निर्दयम् ॥ मरणात्तेषु जीवेषु यत्प्रतीकारवाञ्छया । अनुग्रहमतिसेयं करुणेति प्रकीर्तिता ॥ ज्ञानर्णवि, २७.७-८-६ ४. दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् । प्रतीकारपरा बुद्धि कारुण्यमभिधीयते ॥ योगशास्त्र, ४.१२८ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy