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________________ 141 योगबिन्दु की विषय वस्तु भाव होना, उनकी प्रशंसा करना, उनकी सेवा करना ही प्रमोद भावना हैं'।' प्रमोद को मुदिता के रूप में भी बतलाया गया है । आचार्य शुभचन्द के अनुसार जो पुरुष तप, शास्त्राध्ययन और यमनियमादि में उद्यमयुक्त चित्त रखते हैं, ज्ञान ही जिनके नेत्र हैं, जो इन्द्रिय, मन और कषायों को जीतने वाले हैं तथा स्वतत्त्व के अभ्यास करने में निपुण हैं, जगत् को चमत्कृत करने वाले चारित्र से जिनका आत्मा अधिष्ठित है, ऐसे पुरुषों के गुणों में जो प्रमोद अथवा हर्ष का होना है, उसे ही सज्जनों ने ‘मुदिता' कहा है। ___ऋग्वेद का एक मन्त्र भी इस विषय में विशेषता रखता है जैसे कि हम बड़े (गुणों से श्रेष्ठ), छोटे (गुणों में कम), युवा और वृद्ध–सभी गुणीजनों को नमस्कार करते हैं । अतः सभी को एक दूसरे के गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए। गुणों को ग्रहण करने की सतत प्रेरणा देते हुए प्रभु महावीर कहते हैं कि जब तक शरीरभेद अर्थात् मृत्यु नहीं होती तब तक गुणों की आराधना करते रहें---कंखे गुणे जावसरीरभेअ। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जो अपने से गुणों में बड़े हैं, जिन में गुण अधिक हैं, उनके प्रति ईर्ष्या न करके गुण ग्रहण करना और उनके गुणों को देखकर प्रसन्न होना साधक के लिए श्रेयस्कर है। इस प्रकार अध्यात्म के अन्तर्गत प्रमोद भावना के द्वारा गुणग्रहण १. अपास्ताशेषदोषाणां वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् । गणेषु पक्षपातोऽयं सः प्रमोद: प्रकीर्तितः । योगशास्त्र, ४.११६ २. तपः श्रुतयमो युक्तचेतसां ज्ञानचक्षुषाम् । विजिताक्षकषायाणां स्वतत्त्वाभ्यासशालिनाम् ॥ जगत्त्रयचमत्कारिचरणाधिष्ठितात्मनाम् । तद्गुणेषु प्रमोदो यः सद्भिः सा मुदिता मता ॥ ज्ञानावि, २७.११-१२ ३. नमो महदम्यो नमो अर्भकम्यो नमो युवभ्यो नमो नाशिनेभ्यः । ऋग्वेद, १.२७.१३ ४. मिथःसन्तःप्रशस्तयः । वही, १.२६.६ ५. उत्तराध्ययनसूत्र, ४.१३ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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