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योगबिन्दु की विषय वस्तु
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को सूक्ष्म से सूक्ष्मता की ओर ले जाती हैं, जहां मोक्ष की स्थिति है। यद्यपि मोक्ष और सत्य का ज्ञान दोनों पर्यायवाची हैं, कारण कि जिसको सत्य का ज्ञान हो जाता है, वह जीव फिर जन्म मरण नहीं करता। योग स्थित ज्ञान की सात भूमिकाएं। (१) शुभेच्छा
वैराग्य उत्पन्न होने पर साधक के मन मैं अज्ञान को दूर करने और शास्त्र एवं सज्जनों की सहायता से सत्य को प्राप्त करने की इच्छा का उत्पन्न होना शुभेच्छा है।
(२)..विचारणा
शास्त्राध्ययन, सत्संग, वैराग्य और अभ्यास से सदाचार की प्रवृत्ति का उत्पन्न होना ही विचारणा है । (३) तनुमानसा
शुभेच्छा और विचारणा के अभ्यास से इन्द्रिय की विषयों के प्रति गमन सम्भव न होने से मन की स्थूलता का ह्रास होता है। इसे ही तनुमानसा कहते हैं। (४) सत्त्वापति
पूर्वोक्त तीनों भूमिकाओं के अभ्यास और विषयों की विरक्ति से आत्मा में चित्त की स्थिरता का होना की सत्त्वापत्ति है। (५) असंसक्ति
इस भूमिका में पूर्व की चार भूमिकाओं के अभ्यास तथा सांसारिक विषयों में असंसक्ति होने से, सत्त्वगुण के प्रकाश से मन स्थिर हो जाता
१. ज्ञानभूमिः शुभेच्छाख्या प्रथमा समुदाहृता ।
विचारणा द्वितीया तु तृतीया तनुमानसा ।। सत्त्वापत्तिश्चतुर्थी स्यात्ततोऽसंसक्ति नामिका । पदार्थमानवी षष्ठी सप्तमी तुर्यगास्मृता ।।
योगवासिष्ठ, उत्पत्ति प्रकरण, ११-८.५६
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