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परिच्छेद-तृतीय योगबिन्दु की विषय वस्तु
(क) योग साधना का विकास
भारतीय आध्यात्मिक क्षेत्र में योग साधना का विकास क्रमबद्ध ढंग से उपलब्ध होता है। यहां पर हम इसी का योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करेंगे। (१) वैदिक परम्परा में योग साधना का विकास
वैदिक साहित्य वेदत्रयी के नाम से प्रख्यात है, जो ज्ञान, कर्म एवं उपासना इन तीन मार्गों का स्पष्ट निर्देश करती है। साधक इन्हीं तीन मार्गों पर चलकर अपना अभीष्ट लाभ करता है। योग साधना और भक्ति इन मार्गों का पावन त्रिवेणीसंगम है।
भक्ति
... 'भक्ति' शब्द का ही पर्यायवाची शब्द है-उपासना । सत्त्व भक्ति में अपने इष्ट का निरन्तर चिन्तन-मनन और स्मरण करता है जबकि उपासना में वह अपने इष्ट को अपने हृदय में अधिष्ठित करके उनका बारम्बार अनुचिन्तन और स्मरण करता है।
उपासना
उपासना का शाब्दिक अर्थ है-अपने इष्ट के समीप बैठना, अर्थात् जिसमें हमने अपने आराध्य की प्रतिष्ठापना की है. उसके समीप रहना। उसके समीप रहकर हम उसके अनुग्रह भाजन याकि कृपापात्र बन सकते हैं। यहां पर विश्वास अथवा दृढ़ आस्था का प्राधान्य रहता है । संकल्प एवं दृढ़ आस्था के द्वारा साधक अपने पाप कमों से मुक्त हो जाता है। १. दे० भक्ति का विकास. पृ० १११; २. इस अर्थ में बौद्ध उपोसथ शब्द का प्रयोग करते हैं । दे० महावग्ग ३. ऋग्वेद संहिता, १-१२७-५
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