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योगविन्दु के रचयिता : आचार्य हरिभद्रसूरि (७) षड्दर्शनसमुच्चय
हरिभद्रसूरि की इस दार्शनिक कृति में क्रमशः बोद्ध, नैयायिक, सांख्य वैशेषिक एवं जैमिनीय (मीमांसा दर्शन) तथा जैन एवं चार्वाक दर्शन का प्रारम्भ में विशिष्ट परिचय के साथ उनके मुख्य-मुख्य तत्वों को लेकर जैन दृष्टि से खण्डन-मण्डन किया गया है।
इस पर सुयोग्य विद्वान आचार्य गुणरत्न ने 'तर्क रहस्य टीका' लिखी है जिसमें गहीत समस्त दर्शन के तत्वों को और अधिक स्पष्ट रूप से समझाया गया है । इसी कारण आज भी षड्दर्शन समुच्चय दर्शन के छात्रों में अधिक लोकप्रिय है और बड़ी रुचि के साथ अध्ययन की जाती है।
इस पर दूसरी टोका सोमतिलकसूरि की तथा एक अवचूरि भी प्राप्त होती है किन्तु अवचूरि के लेखक का नाम अज्ञात है। वर्तमान में षड्दर्शन समुच्चय पर गुजराती अनुवाद तो मिलता ही है, साथ ही भारतीय ज्ञान पीठ वाराणसी से इसका सटीक हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन भी किया जा चुका है, जिससे इसकी उपयोगिता का ज्ञान स्पष्ट हो जाता है। (८) शास्त्रवार्तासमुच्चय
हरिभद्रसूरि की दार्शनिक जगत् में यशः ध्वज का दूसग मेरुदण्ड शास्त्रवार्तासमुच्चय रहा है। संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में ७०० श्लोक हैं जिन पर स्वयं आचार्य हरिभद्रसरि ने 'दिवप्रदा' नाम की विस्तृत टीका भी लिखी है। इससे यह ग्रंथ और अधिक सुगम एवं सुवाच्य बन गया है, फिर भी आज के जिज्ञासुओं को यह अगम्य ही प्रतीत होता है। इसी कारण आधुनिक विद्वान् यशोविजय उपाध्याय ने इस पर सरल संस्कृत में ही स्याद्वाद कल्पलता नामक एक और अन्य टीका लिखी है। पाठक को 'शास्त्रवार्ता समुच्चय' समझाने के लिए यह टीका वास्तव में 'कल्पलता' ही है।
शास्त्रवार्तासमुच्चय का विषय भूतचतुष्टयवाद, काल, स्वभाव, नियति एवं कर्मवाद का अन्यान्य दर्शनों के पक्षों का मण्डन और जैन सिद्धान्तानुसार उनकी समीक्षा करना है। न्याय-वैशेषिक सम्मत ईश्वर
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