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________________ 78 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन मध्यममार्गी बौद्धों का प्रभाव दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा था । मात्र जैनदर्शन की ही नहीं बल्कि अन्य बौद्धतर भारतीय सभी दर्शनों के अस्तित्व को भी भय उत्पन्न हो गया था। भारत में चारों ओर भारताय वाङमय के एक से एक मर्मज्ञ विद्वानों का जन्म इसी युग में ही हुआ, फिर भी इस शास्त्रार्थ प्रधान युग में वही टिक पाता था, राजदरबार में उसी का बोल-बाला होता था, जो अपने अकाट्य तर्कों एवं प्रबल प्रमाणों से एक दूसरे के मतों एवं सिद्धान्तों का खण्डन कर देता था। विद्वानों को राजप्रश्रय भी दिया जाता था किन्तु कुछ ऐसे स्वाभिमानी विद्वान् भो थे, जो राजप्रश्रय से परे होते हुए भो राजगुरु पद से विभूषित थे । आचार्य हरिभदसूरि अपने कार्य में ही मस्त रहन वाले आचार्य थे। उनका एक मात्र लक्ष्य जैन धर्म-दर्शन की प्रभावना करना था। वे कभी भी इससे पीछे नही हटे । जब भी आगे बढ़े तो झंझावात की तरह और जब भी कहीं रुके तो वहीं चट्टान को तरह निर्भय अडिग खडे रहे। आप जैसे आचार्यों के आविर्भाव के कारण ही आदिकाल से आज तक जैन धर्म-दर्शन जीवन्त बना हुआ है। सूरि ने अपने गौरवशाली एवं सीमित जीवनकाल में जैन धर्म की ध्वजा फहराते हुए अनेक महनीय कार्य किए, विशेष कर उन्होंने भारतीय वाङमय को जो कुछ भी दिया है, वह हैं उनकी अमर रचनाएं । यहां हम उक्त कृतियों का वर्गीकरण करते हुए संक्षिप्त अध्ययन करेंगे। __ वाङमय को चाहे वह न्याय दर्शन की विधा ही क्यों न हों अथवा साहित्य याकि काव्य-शास्त्र अथवा ज्योतिष शास्त्र उनकी निर्द्वन्द्व लेखनी बेधड़क योग, स्तुति, कथा आदि उस समय में प्रचलित समस्त साहित्यिक विधाओं पर चलती गयी। यहां तक कि जैन आचार-दर्शन प्रधान आगम ग्रंथों पर कहीं टीकाएं, तो कहीं भाष्य लिखने से भी वे नहीं चूकें । पण्डित प्रवर सुखलाल संघवी के मतानुसार उनके द्वारा कृत वर्गीकरण को किञ्चित् परिवर्तन के साथ यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूं(क) दार्शनिक ग्रन्थ (१) अनेकान्त जयपताका (स्वोपज्ञ टीका सहित) ___ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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