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________________ 60 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन इससे पता चलता है कि हरिभद्रसूरि ने वि०सं० ५८५ में स्वर्गलाभ किया था। अतएव आचार्य हरिभद्रसूरि का समय छठी शताब्दी का उत्तरार्ध निश्चित होता है। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री का मत आधुनिक विद्वान् डा. नेमिचन्द्र शास्त्री हरिभद्रसूरि के समय की पूर्व सीमा ई०सं ७०० के आस-पास मानते हैं । इसकी पुष्टि में वे कहते हैं कि विचारश्रेणी और प्रबन्ध चिन्तामणि में आगत गाथा 'पंचसए-' का अर्थ एच०ए • शाह ने जिस प्रकार से किया है उसके अनुसार यहां वि०सं० के स्थान पर गुप्त सम्वत् का ग्रहण होना चाहिए। इससे गुप्त सम्वत् ५८५ शक सम्वत् ७०७ में और वि सं ८४३ में तथा ई.स ७८५ में अन्तर्भूत होता है और यही हरिभद्रसूरि का स्वर्गारोहणकाल निश्चित होता है। ___ यतिवृषभ की तिलोयपणति (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) के अनुसार महावीर के निर्वाण के ४६१ वर्ष बाद शकारि नरेन्द्र विक्रमादित्य उत्पन्न हुए थे। इस वंश का राज्यकाल का प्रमाण २४२ बर्य है और गुप्तों के राज्यकाल का प्रमाण २५५ वर्ष है। इसके अनुसार १८५-१८६ सन् के लगभग गुप्त सम्वत् का आरम्भ हुआ और इस गुप्त सम्वत् में ५८५ वर्ष जोड़ दिये जाए तब ई० सन् ७७०-७७१ के लगभग हरिभद्रसूरि का निर्वाण समय बैठता है जिसकी पुष्टि मुनि जिनविजय के लेख से भी हो जाती है। आदिशंकराचार्य से पूर्ववर्ती हरिभद्रसूरि प्रोफेसर आम्यंकर हरिभद्रसूरि के ऊपर शंकरचार्य का प्रभाव बतलाकर उन्हें शंकराचार्य का पश्चात्वर्ती मानते हैं किन्तु हरिभद्रसूरि के दर्शन विषयक ग्रंथों को देखने और उनके द्वारा प्रदत्त पूर्ववर्ती दार्शनिकों १. हरि० प्रा० क० सा० आ० परि०, पृ० ४३ २. वही ३. विशेष अध्ययन के लिए दे. अनेकान्तजयपताका, भाग-२, प्रस्तावना, तथा ह.िप्रा० क०सा० परि०, पृ० ४३ पर फुट नोट ४. दे० विंशतिविशिका, प्रस्तावना, तथा हरि०प्रा० क०सा० आ०परि०, पृ० ४५ फुट नोट नं. १ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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