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________________ ( viii ) धार्मिक जनता के आधार भूत, वाग्मी श्री अमर मुनि जी महाराज, श्री भण्डारी जी म. के शिष्य हैं जो कि लोक में चन्द्रमा के समान प्रिय हैं ॥६॥ आदित्य इव तेजस्वी सत्यधर्म-परायणः । शिष्येष्वन्यतमस् यस्तस्य सुव्रतो मुनिरात्मवान् ॥७॥ सूर्य के समान तेजस्वी और सत्य धर्म परायण श्री अमर मुनि जी महाराज के शिष्यों के प्रमुख आत्मार्थी सुव्रत मुनि जो है ।।७।। संस्कृतं वाङ मयं श्रुत्वा शास्त्रिकक्षामतीतरत् । एम०ए, श्रेणिमुत्तीर्य अभ्यस्य सर्ववाङमयम् ॥८॥ सुव्रत मुनि जी महाराज ने संस्कृत वाङमय का अध्ययन करके शास्त्री परीक्षा पास की, फिर हिन्दी एवं संस्कृत का अभ्यास करके उनमें एम० ए० किया है ।।८।। जैनयोगमधिकृत्य प्रबन्धमलिखद् यतिः । विद्यापीठे कुरुक्षेत्रे सम्मानमतिलब्धवान् ।।६।। जैन योग को आधार बना कर कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के तत्त्वावधान में शोध प्रबन्ध लिखकर मुनि जी ने उच्च-सम्मान प्राप्त किया है ॥६॥ पी०एच०डी० पद प्राप्त सुव्रतो मुनिनांवरः । उदयं भाविनं काङ्क्षे युवकस्य मुनेरहम् ॥१०॥ पी०एच०डो० उपाधि प्राप्त श्रेष्ठ युवक मुनि सुव्रत जी म० के उज्जवल भविष्य की मैं शुभ आशंसा करता हूं ।।१०।। यशोदेव शास्त्री (साहित्य-दर्शनाचार्य) पूर्व प्रधानाचार्य श्री सरस्वती संस्कृत कालेज खन्ना मण्डी (पंजाब) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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