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शुभाशंसा
जैनधर्मस्य आचार्येषु आत्मारामः प्रसिद्धः । आत्मारामस्य जैनस्य आचार्यस्य महात्मनः ॥१॥ विद्वांसस्तस्य वैशिष्याश्चत्वारः सागरोपमाः ।
ज्ञान-रत्नाकाराः सर्वे संस्कृतागम-कोविदाः ।।२।। जैन धर्म के आचार्यों में प्रसिद्ध आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज थे। उन आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के सागर के समान गम्भीर चार शिष्य हैं जो कि ज्ञान रत्नों से सम्पन्न और संस्कृत आगम ज्ञान से युक्त हैं ।। ११२ ॥
श्री हेमचन्द्रः प्रथमो अपरो ज्ञानिनां मुनिः ।
तृतीयो रत्नमुनि, श्रीमान् तूर्यो वाग्मी मनोहरः ।।३।। उनमें प्रथम श्री हेमचन्द्र जी महाराज, दूसरे श्री ज्ञान मुनि जी महाराज, तीसरे श्री रतनमुनि जी महाराज और चोथे श्री मनोहर मुनि जी महाराज हैं ।। ३ ॥
श्री हेमचन्द्रस्य मुनेः जैनागम पारदश्वनः ।
भण्डारी पद्मचन्द्रोऽयं मुख्यशिष्यो विराजते ॥४॥ __ श्री हेमचन्द्र जी म० जैन आगमों के पारगामी विद्वान थे, उनके प्रमुख शिष्य हैं श्री भण्डारी पद्मचन्द्र जी महाराज ॥४।।
भारतोत्तर भागस्य निर्देष्टा प्रथितो यतिः ।
भण्डारी नामवाच्योऽसो मुनिराजो विराजते ॥५॥ श्री भण्डारी पद्मचन्द्र जी महाराज उत्तर भारत जैन संथ के निर्देष्टा-प्रवर्तक हैं और जन सामान्य में वे भण्डारी जी महाराज के नाम से विख्यात हैं ॥५॥
वामी धर्मभृतां धुर्यस्तच्छिष्योऽमरो मुनिः । जैनागमविशेषज्ञो लोककान्तशशी यथा ॥६॥
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