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आत्मा'६८ जो सतत गतिमान व सर्वव्यापी है, वह आत्मा है। आत्मा का कभी माश नहीं होता। इसलिए आक्रोश, हनन, मारण आदि के प्रसंग में भिक्षु को आत्मा की अमरता का संदेश देते हुए कहा गया - _ 'नत्थि जीवस्स नासो त्ति' उत्तर. २/२७
आत्मा का कभी नाश नहीं होता। काठकोपनिषत् में कहा गया-'नायं हन्ति न हन्यते'५९ - यह आत्मा न मरता है न मारा जाता है। रचनाकार के इस तथ्य की तुलना गीता के इस श्लोक से भी कर सकते है
न जायते म्रियते वा कदाचित् नायंभूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥७०
यह आत्मा न जन्मता है न मरता है। एक बार अस्तित्व में आने के बाद कभी समाप्त नहीं होता। यह अजन्मा, शाश्वत, नित्य और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी नहीं मरता। कर्म
'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि' उत्तर. ४/३ किए हुए कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं होता।
कालिदास और बाणभट्ट ने भी इस दार्शनिक तथ्य को स्वीकारा है - 'परलोकजुषां स्वकर्मभिर्गतयो भिन्नपथा हि देहिनाम्'७१ -परलोक पाने वाले मनुष्यों की गतियां अपने-अपने कर्म के अनुसार भिन्न-भिन्न मार्ग वाली होती हैं। बाणभट्ट कहते हैं-किए हुए अपने कर्म के परिणाम से कोई बच नहीं सकता 'आत्मकृतानां हि दोषाणां नियतमनुभवितव्यं फलमात्मनैव।'७२ स्वयं किए हुए दोषों का फल भी स्वयं को ही अवश्य अनुभव करना पड़ता है-'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्' इस लोकोक्ति से यह सूक्ति तुलनीय है।
आगमकार ने कर्म पर बल दिया है। कर्मवाद के प्रसंग में 'वत्सो विन्दति मातरं' की उक्ति को स्पष्ट करने वाली सूक्ति है
'कत्तारमेवं अणुजाइ कम्म' उत्तर. १३/२३ कर्म कर्ता का अनुगमन करता है। कृत-कर्म के अनुसार प्राणी अकेला ही सुख-दुःख का संवेदन करता
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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