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________________ 'अणुसासिओ न कुप्पेज्जा' उत्तर. १/९ अनुशासित होने पर क्रोध न करें। सदाचार के मानक क्षुद्रता असद् भाव है। इसके कारण दूसरे अवगुण सम्वर्धित होते हैं। क्षुद्र व्यक्ति स्वयं भी साधना में प्रगति नहीं कर सकता, दूसरों को भी नहीं करने देता। वह स्वभाव से ही असंयत तथा उच्छंखल वृत्ति का होता है। अतः आगम-कार वैसे व्यक्तियों से दूर रहने की प्रेरणा देते हैं खुड्डेहिं सह संसग्गिं, हासं कीडं च वज्जए। उत्तर. १/९ क्षुद्र व्यक्तियों के साथ संसर्ग, हास्य और क्रीड़ा न करें। ४. सम्यक् व्यवहार संसार के प्रत्येक प्राणी के साथ सम्यक् व्यवहार के लिए आवश्यक है- आवश्यकता से अधिक न बोलें, समय का अंकन करें। मितभाषिता व्यवहार और नीति का क्षेत्र विशाल है। जीवन के हर क्षेत्र में उनका प्रवेश संभव है। अधिक बोलने की मनोवृत्ति पर प्रहार करते हुए कहा गया - 'बहुयं मा य आलवे' उत्तर. १/१० बहुत न बोलें। इस संदर्भ में बाण का यह कथन बहुत मार्मिक है - 'बहुभाषिणो न श्रद्दधाति लोकः४५ बहुत बोलने वाले पर संसार विश्वास नहीं करता। दैनिक व्यवहार में अतिभाषी के प्रति औरों का व्यवहार बदल जाता है, इस व्यवहारिक तथ्य के साथ मितभाषिता अपनाने की नीति का निदर्शन ‘बहुयं मा य आलवे' सूक्ति से हुआ है। समय जीवन में व्यवस्था, नियमन एवं अनुशासन अपेक्षित है। अव्यवस्थित, अनियमित, अननुशासित जीवन कभी हितावह व सुखावह नहीं होता। श्रमण के लिए तो अत्यन्त आवश्यक है कि उसका प्रत्येक कार्य सुनिश्चित समय पर हो। समय की महत्ता का गान सीधी, सटीक भाषा में काले कालं समायरे' उत्तर. १/३१ 66 उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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