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कैसे देखें?
अध्यात्म साधक अपने को देखता है, दूसरों को नहीं, इसी का संकेत है- 'न सिया तोत्तगवेसए' उत्तर. १/४० छिद्रान्वेषी न हों। २. सम्यक् विचार
जैन दर्शन का राजप्रासाद भाव पर आधारित है। भाव विचार का प्रवर्तक है। विचार बांधते हैं, विचार ही भटकाते हैं और विचार ही नवीन जीवन का सेतु बनते हैं। आवश्यक है सम्यक् विचारकब बोलें
'नापुट्ठो वागरे किंचि' उत्तर. १/१४
बिना पूछे कुछ भी न बोलें। मनुस्मृति में इसी के समकक्ष सूक्ति प्राप्त होती है -
'नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात् ९४
बिना पूछे किसी के बीच में नहीं बोलना चाहिए। माया का वर्जन
भाषा के दोषों के परिहार का निर्देश देते हुए कहा गया - 'मायं च वज्जए सया' उत्तर. १/२४ माया का सदा वर्जन करें।
माया-कपट युक्त भाषा सदोष है, दुर्गति का कारण है। अतः माया का आचरण त्याज्य है। ३. सम्यक् आचार
हमारे व्यक्तित्व की उजली तसवीर हमारा अपना आचार है। सम्यक् आचार ही लक्ष्यप्राप्ति में सहायक बनता है। अनुशासन का अंगीकार
शासन वही कर सकता है जिसने अनुशासन का जीवन जीया है। विकास के लिए अनिवार्य है अनुशासन को सहने की शक्ति। इसी ओर इंगित करती है यह पंक्ति
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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