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आगम और सूक्ति
__ आगम-साहित्य अपनी महनीयता और उदात्तता के लिए प्रसिद्ध है। उसमें प्रचुर सूक्ति-भण्डार सुरक्षित है। भारतीय वाङ्मय के परिशीलन से विदित होता है कि प्राचीनकाल से ही साहित्य में प्रचुर सूक्तियां विद्यमान है। इसलिए जो साहित्य जितना पुराना है उतनी ही पुरानी उसकी सूक्तियां भी है। प्रत्येक युग में उनका सर्जन होता रहा है और साहित्य की हर विधा में उनका प्रवेश हुआ है। अध्यात्म, दर्शन एवं जीवनमूल्यों के उद्घाटन में आगमकार ने सूक्तियों का विनियोजन किया है। इन सूक्तियों का आध्यात्मिक मूल्य तो है ही, साथ-साथ ये सूक्तियां जीवन व्यवहार के लिए भी अत्यन्त उपयोगी है।
__उत्तराध्ययन सूक्तियों का आकर ग्रंथ है। जीवन-सत्य सहज और संक्षिप्त कथन के रूप में अनायास शब्दबद्ध होकर चिरस्मरणीय सूक्तियों के रूप में प्रकट हुए हैं। शब्दों के अलंकार, छन्दों की लयबद्धता एवं भावों की गम्भीरता उत्तराध्ययन की सूक्तियों की मौलिक प्रभविष्णुता एवं अस्मिता की कारक है। ऋषियों की अन्तःप्रज्ञा ने सूक्ति द्वारा अनास्था, अनिश्चय तथा अकर्मण्यता के धुंधलाये परिवेश को चेतना के आलोक से भासित किया है।
सूक्ति संघटना के दो पक्ष हैं - कलापक्ष और भावपक्ष। सूक्तियों के कलापक्ष की श्रेष्ठता उसमें प्रयुक्त कवि प्रतिभा पर है। अलंकार, छंद, भाषा, शैली आदि कलापक्ष के तत्त्व हैं।
कवि द्वारा पाठकों तक प्रेषणीय भाव या विचार की परिपक्वता, उत्कृष्टता आदि से सूक्तियों के भावपक्ष की श्रेष्ठता परिलक्षित होती है।
यहां सूक्तियों के अध्ययन का आधार भाव-पक्ष और विचार-पक्ष को बनाया गया है।
सूक्ति के भाव और विचार-पक्ष का आश्रय लेकर अध्ययन की कई दिशाएं हो सकती हैं। साहित्यिक दृष्टि से सूक्ति के भाव-सौन्दर्य को परखा जा सकता है, सांस्कृतिक दृष्टि से लोक-जीवन की विविध विधाओं को जाना जा सकता है। आलोचनात्मक और समीक्षात्मक दृष्टि से सूक्तियों का औचित्य एवं तुलनात्मक दृष्टि से कल्पना, भाव और विचार का साम्य
उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे
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