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इस प्रकार उत्तराध्ययन में बिम्ब-विधान विवेचन प्रसंग के आधार पर कहा जा सकता है कि बिम्ब में भाव की सत्ता ही प्राण-प्रतिष्ठा करती है। बिम्ब के पक्षधर सी. डे. लेविस ने बिम्ब-निर्माण में कुछ आवश्यक गुण उद्बोधनशीलता, सधनता, नवीनता, औचित्य आदि माने हैं, वे उत्तराध्ययन में अनायास उपलब्ध हैं। रचनाकार की बिम्ब-सर्जना रचना का केवल बाह्य उपकरण ही नहीं है, मानवीय संवेदना तथा अध्यात्म चेतना की अतल गहराई तक पहुंचने का सोपान भी है और इस बिम्ब-निर्माण से मूर्त्त-अमूर्त्त भावों की अभिव्यक्ति, दार्शनिक सिद्धांत आदि अनुभूतिगम्य बने हैं। सूक्ति एवं मुहावरे
__सूक्ति काव्य की रमणीयता में वृद्धि करती है, रसवत्ता को उद्घाटित करती है, रोमांचकता को संवर्धित करती है। 'उत्तिविसेसो कव्वं'२२ -उक्तिविशेष को काव्य कहते हैं। सूक्ति : स्वरूप विवेचन
'सु' और 'उक्ति' के योग से 'सूक्ति' शब्द निष्पन्न है। यास्क ने 'सु' का अर्थ स्वीकृति (पूजार्ह) माना है।२३ मेदिनी कोष में 'सु' को पूजा, अनुमति, आधिक्य, समृद्धि आदि अर्थों का द्योतक माना है।२४
'वच परिभाषणे" धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' सूत्र से क्तिन् प्रत्यय तथा 'वचिस्वपियजादीनां किति' से सम्प्रसारण करने पर उक्ति शब्द बनता है। सु के साथ उक्ति के मिलन से सूक्ति शब्द निर्मित होता है। जिसका अर्थ है-सम्माननीय वचन, समृद्ध वाणी, उत्कृष्ट पदावली आदि।
वह वचन या उक्ति सूक्ति है जो संक्षिप्त होते हए भी गंभीर अर्थवत्ता को धारण करती है। सूक्ति वह है जो सद्विचार का प्रतिनिधित्व और सदाचार का प्रवर्तन करे। सूक्ति का प्रवर्तन क्यों?
प्रबोधाय विवेकाय हिताय प्रशमाय च। सम्यक्तत्त्वोपदेशाय सतां सूक्तिः प्रवर्तते॥२६
प्रबोध के लिए, विवेक जागरण के लिए, हित के लिए, शांति के लिए. तथा सम्यक् तत्त्व के उपदेश के लिए सज्जनों की सूक्तियां प्रवर्तित होती हैं।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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