________________
बिम्ब का निर्माण कर रहे हैं। साथ-साथ 'तुरियाण' तथा 'गगणं' शब्द रूप बिम्ब का भी निरूपण कर रहे हैं।
रागातुर शब्द अकाल में ही जीवनलीला को समाप्त कर देते हैं - सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं| रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्छं।।
उत्तर. ३२/३७ जो मनोज्ञ शब्दों में तीव्र आसक्ति करता है, वह अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है। जैसे-शब्द में अतृप्त बना हुआ रागातुर मुग्ध हिरण मृत्यु को प्राप्त होता है।
इस शब्द-बिम्ब से यहां मनोज्ञ शब्द के परिणाम की भयंकरता का प्रतिपादन हो रहा है। आसक्ति के भाव बिम्ब का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा अकाल-मृत्यु के भय बिम्ब का भी चित्रण हो रहा है। चाक्षुष-बिम्ब
नेत्रेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य बिम्ब चाक्षष बिम्ब कहलाता है। कवि की पारदर्शी अन्तर्दृष्टि ने वर्णित विषय को प्रमाता के एकदम निकटस्थ और प्रत्यक्ष कर चाक्षुष-बिम्ब की प्रस्तुति में सफलता प्राप्त की है।
'अदंसणिज्जे' आदि के द्वारा उपस्थापित बिम्ब से ब्राह्मणों की क्रोध से उत्तप्त दशा का साक्षात्कार होता है
कयरे तुम इय अदंसणिज्जे काए व आसा इहमागओ सि| ओमचेलगा पंसुपिसायभूया गच्छक्खलाहि किमिहं ठिओसि।।
उत्तर. १२/७ ओ अदर्शनीय मूर्ति! तुम कौन हो? किस आशा से यहां आए हो! अधनंगे तुम पांशु पिशाच से लग रहे हो। जाओ, आंखों से परे चले जाओ। यहां क्यों खड़े हो? लोक की दृष्टि में मुनि के रूप का भयंकर बिम्ब बन रहा है जिससे मुनि के बाह्य रूप का दृश्य आंखों के समक्ष सजीव हो रहा है। 'ओमचेलगा', 'पंसुपिसायभूया' आदि विशेषण इतने चित्रात्मक है, यदि कोई चित्रकार चाहे तो इन शब्दों के आधार पर पूरा चित्र निर्मित कर दे।
इणुकार नगर का वर्णन कर कवि ने उसकी ऋद्धि-समृद्धि का समग्र . चित्र नेत्रों के समक्ष उपस्थित कर दिया है
44
उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org