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शैली : भारतीय मत
शैली के संदर्भ में भारतीय विद्वानों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। करुणापति त्रिपाठी के अनुसार जब कोई विचार आकर्षक, रमणीय व प्रभावोत्पादक रीति से अभिव्यक्त किया जाता है, तब उसे हम साहित्य जगत में 'शैली' कहने लगते हैं।
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सीताराम चतुर्वेदी शब्दों की कलात्मक योजना को शैली कहते हैं। गोविन्द त्रिगुणायत के शब्दों में शैली मनोगत भावों को मूर्तरूप प्रदान करने वाला साधन है।
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डॉ. श्यामसुन्दरदास ने शैली को रचना का चमत्कार और विचारों का परिधान माना।' उनका कहना है कि भाव, विचार और कल्पना तो हममें नैसर्गिक अवस्था में वर्तमान रहती है तथा उन्हें व्यक्त करने की स्वाभाविक शक्ति भी हममें रहती है। इसी शक्ति को साहित्य में शैली कहते हैं।
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बाबू गुलाबराय ने भारतीय और पश्चिमी विचारों का समन्वय करके मध्यममार्ग से शैली को ग्रहण किया है। उन्होंने कहा-शैली अभिव्यक्ति के उन गुणों को कहते हैं जिन्हें लेखक या कवि अपने मन के प्रभाव को समान रूप में दूसरों तक पहुंचाने के लिए अपनाता है।
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शैली एक साधन है, उसका साध्य है व्यक्तिगत भाव, विचार अथवा अनुभूति को सर्वग्राह्य बनाना।
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संक्षेप में 'वाक्यरचना की विशिष्टता' शैली का यह अर्थ शैली की आधुनिक संकल्पना के पर्याप्त निकट प्रतीत होता है।
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शैली शब्द रीति, वृत्ति, प्रवृत्ति, संघटना, मार्ग आदि अनेक शब्दों की अवधारणाओं को समाहित कर लेता है। अभिव्यक्ति और शैली पर्याय है। अभिव्यक्ति की पद्धति को भारतीय काव्यशास्त्र में रीति, वृत्ति, मार्ग आदि अभिधानों से अभिहित किया गया है।
वामन के अनुसार 'विशिष्टा पदरचना रीति: १४२ शब्द और अर्थ के सौन्दर्य से युक्त पद-रचना रीति है। आधुनिक युग के एक मनीषी आलोचक एवं भाषाविज्ञ ने तो 'शैलीविज्ञान' का निरूपण ही 'रीतिविज्ञान' के नाम से किया है।
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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