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३६. जीवाजीवविभत्ती
इसमें मूल तत्त्व जीव और अजीव के विभागों का निरूपण है। अनेक वर्षों तक श्रामण्य का पालन करने के बाद क्रमिक प्रयत्न से संलेखना का भी इसमें वर्णन है। २६८ वीं गाथा (अन्तिम गाथा) में उत्तराध्ययन के अध्ययनों की संख्या छत्तीस बताई है तथा यह भी कहा गया है कि भगवान महावीर ने इसका प्रज्ञापन किया है।
इस प्रकार उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययन अपनी विशिष्ट शैलीसंयोजना द्वारा मुख्य रूप से संसार की असारता, श्रमणाचार, दार्शनिक सिद्धान्त, तत्त्वज्ञान आदि का निदर्शन कराते हैं। उत्तराध्ययन यद्यपि धर्मकथानुयोग में परिगणित है पर आचार के प्रतिपादन से चरणानुयोग व दार्शनिक सिद्धांत के प्रतिपादन से द्रव्यानुयोग का भी इसमें मिश्रण हो गया
शैलीविज्ञान
शैलीगत अध्ययन वर्तमान युग में साहित्य की सर्वमान्य विशेषता बन गया है। यह साहित्य की भाषा से प्रारंभ होता है और भाषा वैज्ञानिक प्रविधियों का पूरा उपयोग करते हुए विश्लेषण की सभी दिशाओं का स्पर्श करता है। भाषाविज्ञान की सहायता से रचना की सत्यता तक यथार्थ तरीके से पहुंचता है। शैलीविज्ञान : स्वरूप
शैलीविज्ञान का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-वह विज्ञान जो शैली का अध्ययन करे।२२ इसके आधार पर शैलीविज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा गया-शैली के वैज्ञानिक अध्ययन को शैलीविज्ञान कहते हैं।४ डॉ. नगेन्द्र शैलीविज्ञान को 'भाषागत प्रयोगों के विश्लेषण की नियमसंहिता' मानते हैं। साहित्य का सौन्दर्य भाषा द्वारा ग्रहण होता है-इस अवधारणा के साथ शैलीविज्ञान साहित्य विश्लेषण में प्रवृत्त होता है। वह साहित्यिक भाषा के प्रत्येक प्रयोग की अनेक तलों पर व्याख्या कर, उनसे उत्पन्न चमत्कार का प्रत्यक्ष करता है।५
भाषा विज्ञान केवल भाषा की प्रकृति के अध्ययन तक सीमित है। जबकि शैलीविज्ञान भाषा के माध्यम से कथ्य या अनुभूति तक पहुंचने का विधान करता है।२७
उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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