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________________ २८. मोक्खमम्गगई प्रस्तुत अध्ययन में मोक्षमार्ग के साधनभूत ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप-इस चतुरंग मार्ग का निरूपण है। २९. सम्मत्तपरक्कमे इसमें संवेग से जीव क्या प्राप्त करता है, धर्म-श्रद्धा से जीव क्या प्राप्त करता है-इस प्रकार ७१ प्रश्नोत्तरों में जैन साधना-पद्धति का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। ३०. तवमग्गगई तपस्या मोक्ष का मार्ग है, उससे तपस्वी की मोक्ष की ओर गति होती है-यह इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है। ३१. चरणविही ___इसमें मुनि की चरणविधि का निरूपण हुआ है। चरण का प्रारंभ यतना से व अन्त पूर्ण निवृत्ति में होता है। निवृत्ति से जो प्रवृत्ति फलित होती है, वही सम्यक् प्रवृत्ति चरण-विधि है। ३२. पमायट्ठाणं प्रमाद के कारण तथा निवारण के उपायों का प्रतिपादन इसमें किया गया है। प्रमाद साधना का विघ्न है। अतः साधक को प्रतिक्षण अप्रमत्त, जागरूक रहना चाहिए। ३३. कम्मपयडी इसमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय आदि कर्मप्रकृतियों का निरूपण होने से इसका नाम 'कम्मपयडी' है। ३४. लेसज्झयणं यह अध्ययन इस बात की ओर संकेत करता है कि जैसी हमारी लेश्या है, वैसी ही मानसिक परिणति होती है। कषाय की मंदता से अध्यवसाय की शुद्धि एवं अध्यवसाय की शुद्धि से लेश्या की शुद्धि होती है। ३५. अणगारमग्णगई इसका प्रतिपाद्य संग (आसक्ति)-विज्ञान है। असंग का मुख्य हेतु देह-व्युत्सर्ग अनगार का मार्ग है और यह दुःखमुक्ति के लिए है। क्योंकि अनगार दुःख के मूल को नष्ट करने का मार्ग चुनता है। उत्तराध्ययन में शैलीविज्ञान : एक परिचय Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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