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७. निकष
जीवन जड़ और चेतन का संयोग है। चेतन कार्य करता है जड़ के सहारे। जड़ जीवन्त बन जाता है जब चैतन्य अपने उद्देश्य की अभिव्यक्ति चाहता है। शब्द जड़ है, भाव चेतन है। इसीलिए कहा गया-भाषा भावों का लंगड़ाता सां अनुवाद है। भावों को अभिव्यक्त करने और अभिव्यक्ति को ग्रहण करने का माध्यम भाषा ही है। भाषा की विविध विधाओं से भावों का ग्रहण और संप्रेषण होता है। परिस्थिति, मनःस्थिति व अभिव्यक्त होते शब्दों के संयोग से भावों का दर्शन होता है। भाषा वह माध्यम है जिसके सहारे भावों की गहराई में पहुंचा जा सकता है, वक्ता की आत्मा से तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है।
साहित्य की किसी भी विधा में पाठक व लेखक के बीच शब्द ही वह सेतु है जो पाठक को लेखक की आत्मा तक ले जा सके, शब्दात्मा का दर्शन करा सके। समय और क्षेत्र की कोई भी सीमाएं इसके सम्पर्क में बाधक नहीं। कुशल साहित्यकार वही है जो पाठक-चेतना की अंगुली पकड़कर शब्दों में निहित आत्मा तक ले जाए। कुशल पाठक भी वही है जो शब्दों के सहारे आत्मा तक पहुंच जाए। तथ्य यही है शब्द व भाव के बीच एक सेतु हो जाना। शैली वह चाबी है जो पाठक को अपने साथ बहाकर अनुद्घाटित रहस्यों का उद्घाटन कर सके, शब्दों में छिपी आत्मा का दर्शन करा सके। उत्तराध्ययन के इस शैलीविज्ञान अध्ययन में उन्हीं रहस्यमय, पहेलीनुमा तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया गया है।
__ भारतीय संस्कृति के ऋषियों ने आत्मा, परमात्मा एवं विश्व के संबंध में गहन चिंतन, मनन एवं अन्वेषण किया है। इस खोज में उन्होंने जो कुछ पाया, आत्मविकास एवं आत्मशुद्धि के लिए जो यथार्थ मार्ग देखा-समझा उसे अपने शिष्यों को संबोध देकर उस ज्ञानधारा को अनवरत प्रवहमान रखने का प्रयत्न किया। इस ज्ञान-परंपरा को भारतीय संस्कृति में श्रुत या
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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