________________
V
V
V
V
V
गृहिसुव्रताः > गिहिसुव्वया (७/२०)
पादौ > पाए (२०/७) मूर्धन्यीकरण
मूर्धन्य भिन्न कोई भी ध्वनि यदि मूर्धन्य-ध्वनि में परिवर्तित हो जाती है उसे मूर्घन्यीकरण कहा जाता है। जैसे
ऋजुकृतः > उज्जुकड़े (१५/१) दृष्टाः दिट्ठा
(१५/१०) जानामि > जाणामि (१७/२) अनर्था अणट्ठा
(१८/३०) प्रतीत्य > पडुच्च
(३६/१४०) आर्त्त अट्ट
(३०/३५) दन्त्यीकरण
किसी ध्वनि का दन्त्य ध्वनि में परिवर्तन दन्त्यीकरण है। लु दन्त्य स्वर है। प्राकृत में इसका अस्तित्व नहीं है। पात्रम् > पत्तं
(६/१५) एडकः > एलए
(७/७) पुत्रम् > पुत्तं
(१८/३७) अतीर्घः अतरिंसु (१८/५२) ओष्ठ्यीकरण
ओष्ठ्य भिन्न ध्वनि का ओष्ठ्य ध्वनि में परिवर्तन ओष्ठ्यीकरण कहलाता है।
पृथिवी > पुढवी (९/४९) प्राप्य > पप्प
(३६/१४०) सर्वे >
(३६/१४९) स्वराघात
स्वराघात का ध्वनिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वराघात ही ध्वनि के आरोह-अवरोह को प्रदर्शित करता है। अक्षर या अक्षर-समूह के उच्चारण दबाव के कारण अक्षर या अक्षर-समूह विशिष्ट हो जाते हैं, उसे स्वराघात
A A AA
सव्वे
उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
217
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org