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पीने की इच्छा करता है। इससे तो तेरा मरना श्रेय है। राजीमती के ये शब्द मम्मट की ‘कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे' की बात को सार्थक करते हैं। उच्च वंश-परम्परा की ओर रथनेमि का ध्यान आकृष्ट कराकर स्थिर मन हो संयम का पालन करने की प्रेरणा देती है। अंकुश से हाथी की तरह संयम में स्थिर करती है। पुरुष की अपेक्षा नारी अधिक संयमशील होती है - इस तथ्य के प्रकटीकरण के साथ राजीमती का उदात्त चरित्र यहां उजागर हुआ है। मानवीय दुर्बलता उन पर हावी नहीं होती है। राजीमती के विशेषण
काव्य की दृष्टि से उत्कृष्ट, अध्ययन में प्रयुक्त लगभग अठारह विशेषणों का प्रयोग शीलसंपन्न राजीमती के चरित्र के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालता है
शारीरिक दीप्ति के उद्घाटक विशेषण चारु पेहिणी (चारुप्रेक्षिणी) २२/७, सव्वलक्खणसंपुन्ना (सर्वलक्षण सम्पन्न) २२/७, विज्जुसोयामणिप्पभा (चमकती बिजली के समान प्रभा वाली) २२/७, सुरूवे (सुरूप) २२/३७, सुयणू (सूतनू) २२/३७ उत्कृष्ट चरित्र के सूचक सुसीला २२/७, लुत्तकेसं २२/३१, जिइंदियं २२/३१, सीलवंता २२/३२, बहुस्सुया २२/३२, चारुभासिणि २२/३७, संजयाए २२/४६, उच्चवंश के प्रतिपादक रायवरकन्ना (श्रेष्ठ राजकन्या) २२/७, रायकन्ना २२/२८ दु:ख के द्योतक निहासा २२/२८, निराणंदा २२/२८ धैर्य प्रतिपादक धिइमंता २२/३०, ववस्सिया २२/३०
इस प्रकार पूरे अध्ययन में राजीमती संयम, शील, तप और व्रतों की आराधना में संलग्न दिखाई देती है और अंत में अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त करती
है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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