________________
* पर्याय अलंकार
जब एक वस्तु की क्रमशः अनेक स्थानों में अथवा अनेक वस्तुओं की क्रमशः (कालभेद से) एक स्थान में स्वतः अवस्थिति हो या अन्य द्वारा की जाय तो वहां पर्याय अलंकार होता है ।
उत्तराध्ययन में कर्त्ता - धर्त्ता के रूप में आत्मा का वर्णन पर्याय अलंकार का निदर्शन है
आत्मा ही वैतरणी नदी, कूटशाल्मली वृक्ष, कामधेनु, नन्दनवन, सुखदुःख की करने वाली, उनका क्षय करने वाली, मित्र तथा शत्रु है । ६८
यहां एक ही आत्मा का अनेक रूपों में वर्णन होने से पर्याय अलंकार है । * परिकर अलंकार
परिकर का अर्थ है-— उपकरण, उत्कर्षक या शोभाकारक पदार्थ । परिकर अलंकार के उद्भावक रुद्रट के अनुसार विशेष अभिप्राय से युक्त विशेषणों से जहां वस्तु को विशेषित किया जाए वहां परिकर अलंकार होता है ।
आचार्य मम्मट का कहना है
'विशेषणैर्यत्साकूतैरुक्तिः परिकरस्तु सः । ७०
अनेक सार्थक एवं अभिप्राय युक्त विशेषणों के द्वारा वर्णनीय पदार्थ का परिपोषण किया जाए उसे परिकर कहते हैं ।
उत्तराध्ययन
प्रभूतमात्रा में परिकर अलंकार प्रयुक्त हुआ है।
भूतिप्रज्ञ
'अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा,
तुब्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना? उत्तर. १२/३३
अर्थ और धर्म को जानने वाले भूतिप्रज्ञ आप कोप नहीं करते। यहां हरिकेशी मुनि के लिए गुणनिष्पन्न 'भूइपन्ना' शब्द का प्रयोग किया गया।
चूर्णिकार ने भूति का अर्थ मंगल, वृद्धि और रक्षा किया है तथा प्रज्ञा का अर्थ किया है- - वह बुद्धि जिससे पहले ही जान लिया जाता है । जिसकी बुद्धि सर्वोत्तम मंगल, सर्वश्रेष्ठ वृद्धि या सर्वभूत- हिताय प्रवृत्त हो, वह भूतिप्रज्ञ कहलाता है । ७१
174
Jain Education International 2010_03
उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org