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युद्ध में नाग अपनी मर्यादा छोड़ भागता नहीं, वैसे ही संयम स्वीकार करने के बाद परीषह आने पर साधु अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता । मर्यादा की रक्षा बिना पराक्रम नहीं हो सकती । प्रस्तुत उपमान द्वारा यहां धैर्यशीलता, स्थिरता, सहनशीलता अभिव्यंजित हुई है।
शील सुरक्षा
'जहा विरालावसहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बम्भयारिस्स खमो निवासो ॥'
उत्तर. ३२/१३
जैसे बिल्ली की बस्ती के पास चूहों का रहना अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार स्त्रियों की बस्ती के पास ब्रह्मचारी का रहना अच्छा नहीं होता। इस प्रसंग में बिडाल की उपमा स्त्री से तथा चूहे की उपमा ब्रह्मचारी से की गई है। इससे यह द्योतित होता है कि बिडाल के पास रहने से चूहों की मृत्यु निश्चित है, वैसे स्त्रियों के पास रहने से ब्रह्मचर्य रूपी शिरोरत्न की सुरक्षा संभव नहीं है ।
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इसी प्रकार बहुश्रुत साधु को प्रतिपूर्ण चन्द्रमा की
जहा से उडुवई चंदे नक्खत्तपरिवारिए ।
पडिपुणे पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए | उत्तर . ११/२५
भोगों को किंपाकफल की
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जहा किम्पागफलाणं परिणामो न सुंदरो।
एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो ॥ उत्तर. १९/१७
भोगासक्त को स्वादु फल वाले वृक्ष की
दित्तं च कामा समभिद्दवंति,
दुमं जहा साउफलं व पक्खी । उत्तर. ३२/१०
साधुओं में श्रेष्ठतम तथा श्रुत - औषधि - सम्पन्न बहुश्रुत को मंदर पर्वत की उपमा दी गई है
जहा से नगाण पवरे सुमहं मंदरे गिरी ।
नाणोसहिपज्जलिए एवं हवइ बहुस्सुए | उत्तर. ११ / २९
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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