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१. उत्तराध्ययन में शैलीविज्ञान :
एक परिचय
भारतीय साहित्य की अनमोल विरासत जैनागम हैं। जैनागम जैनधर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति के मूल आधार हैं। इनमें निरूपित यथार्थ तत्त्व, आध्यात्मिक, नैतिक एवं वैज्ञानिक चिन्तन जीवन की समग्र दिशाओं को उद्घाटित करते हैं। आगमों के पुरस्कर्ता ने पहले स्वयं कठोर साधना कर सत्य का साक्षात्कार किया तथा स्वर्ण की तरह निखरकर जो अनन्त ऐश्वर्य प्राप्त किया उसे 'सव्वजगजीवरक्खणदयट्ठाए पावयणं भगवया सुकहियं - सभी जीवों के प्रति महाकरुणाभाव से उनके उपकार हेतु कहा। आगम और उत्तराध्ययन
आगम क्या है? 'आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः' आप्त वचन से उत्पन्न अर्थ-ज्ञान आगम है। आप्त पुरुषों के अनुभूतिगत सत्य की शाब्दिक अभिव्यक्ति आगम है। आप्त कौन? 'यथार्थविद् यथार्थवादी चाप्तः' यथार्थ जानने वाला और यथार्थ कहने वाला आप्त है तथा वही आप्त-वचन आगम है। आगम के लिए सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धांत, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम आदि अनेक शब्द प्राप्त होते हैं।
जैनागमों का प्राचीनतम वर्गीकरण पूर्व(१४) और अंग (१२)६ के रूप में प्राप्त होता है। आगम-संकलनकालीन दूसरे वर्गीकरण में आगमों को अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य-इन दो वर्गों में विभक्त किया गया है। सबसे उत्तरवर्ती वर्गीकरण के अनुसार आगम अंग, उपांग, मूल और छेद-इन चार विभागों में विभक्त हुआ।
आगम साहित्य में द्वादशांग का उल्लेख सूयगडो (२/१३५), ठाणं (१०/१०३), भगवई (१६/९१, २०/७५, २५/९६), उवासगदसाओ (२/४६, ६/२९) आदि में भी मिलता है।
उत्तराध्ययन में शैलीविज्ञान : एक परिचय
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