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गाथा के अंतर्गत ही रखा गया है। उसी प्रकार दस, ग्यारह अक्षरों वाले भी उत्तराध्ययन में गाथा छन्द के अंतर्गत समाविष्ट किये गये हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है
कंपिल्लम्मि य नयरे SSS I I IIS
= १२ मात्राएं समागया दो वि चित्तसंभूया ISISS I SSSSI = १८ मात्राएं सुहदुक्खफलविवागं । । । । । ।
= १२ मात्राएं कहेंति
ते एक्कमेक्कस्स (उत्तर. १३/३) ISI S SI S S S = १५ मात्राएं
काम्पिल्य नगर में चित्त और संभूत दोनों मिले। दोनों ने परस्पर एक दूसरे के सुख-दुःख के विपाक की बात की।
देवलोगसरिसे SISITIS
= १२ मात्राएं अंतेउरवरगओ वरे भोए। SSITUS IS IS
= १८ मात्राएं भुंजित्तु
नमी राया SSI IS SS
= १२ मात्राएं बुद्धो
भोगे परिच्चयई। (उत्तर. ९/३) SS
SS IS || S = १५ मात्राएं उस नमिराज ने प्रवर अन्तःपुर में रहकर देवलोक के भोगों के समान प्रधान भोगों का भोग किया और संबुद्ध होने के पश्चात् उन भोगों को छोड़ दिया। वर्णिक
अक्षरों की गणना को वर्णिक छन्द कहते हैं। वर्णिक छन्द के तीन भेद हैं
१. समवृत्त-जिसके चारों चरण समान हों।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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