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इसकी उत्पत्ति दिव्य-दर्शन, अभीष्ट-प्राप्ति, लोकोत्तर वस्तु या घटना के कारण भी होती है। यह विस्मय स्थायीभाव वाला रस है।२८
उत्तराध्ययन में बहुत सीमित रूप में अद्भुत-रस की संयोजना हुई है। यथा -
तहियं गंधोदयपुप्फवासं, दिव्वा तहिं वसुहारा य दुठ्ठा। पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं, आगासे अहोदाणं च घुट्ठ।।
उत्तर. १२/३६ देवों ने वहां सुगन्धित जल, पुष्प और दिव्य धन की वर्षा की। आकाश में दुन्दुभि बजाई और 'अहोदानम्' (आश्चर्यकारी दान) इस प्रकार का घोष किया।
___ यहां देवों द्वारा दिव्य धन की वर्षा और 'अहोदानम्' के घोष द्वारा हरिकेशी मुनि की तप-महिमा का साक्षात् दर्शन ब्राह्मणों के लिए विस्मय/ आश्चर्य उत्पन्न कर देता है। शान्त-रस
अनुयोगद्वार में प्रशांत रस का लक्षण बताते हुए कहा गयानिहोसमणसमाहाणसंभवो जो पसंतभावेणं।
अविकारलक्खणो सो रसो पसंतो त्ति नायव्वो॥२९ स्वस्थ मन की समाधि और प्रशान्त भाव से शान्तरस उत्पन्न होता है। अविकार उसका लक्षण है।
नाट्यशास्त्र में शान्त-रस का विवेचन है। शान्तरस का स्थायीभाव शम है। तत्त्वज्ञान के उदय से जागतिक विषयों के प्रति निर्वेद इसका आधार है। भरत के अनुसार शम स्थायीभाव वाला, मोक्ष का प्रवर्तक शान्त-रस है। यह तत्त्वज्ञानजनक विषय, वैराग्य, आश्रयशुद्धि आदि विभावों से उत्पन्न होता है।
उत्तराध्ययन में शांत-रस की प्रधानता है। संसार से निर्वेद दिखाकर अथवा तत्त्वज्ञान आदि के द्वारा वैराग्य का उत्कर्ष प्रकट कर शांत-रस की प्रतीति करायी गयी है।
कपिल मुनि द्वारा बलभद्र आदि चोरों को दिए गए उपदेश में शान्तरस का निदर्शन है -
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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