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महाजंतेसु उच्छू वा आरसंतो सुभेरवं। पीलिओ मि सकम्मेहिं पावकम्मो अणंतसो ॥ उत्तर. १९/५२,५३
अत्यन्त तीखे काँटो वाले ऊँचे शाल्मलि वृक्ष पर पाश से बाँध, इधर-उधर खींचकर असह्य वेदना से मैं खिन्न किया गया हूँ। पापकर्मा मैं अति भयंकर आक्रन्द करता हुआ अपने ही कर्मो द्वारा महायंत्रों में ऊख की भांति अनंत बार पेरा गया हूँ।
यहाँ भयंकर वर्णन से उत्पन्न भय स्थायीभाव है। स्वयंकृत पापकर्म आलम्बन विभाव है। असह्य वेदना से खिन्नता उद्दीपन विभाव है। पाश से बंधना, ऊख की तरह पेरा जाना आदि अनुभाव हैं। निर्वेद, ग्लानि आदि संचारी भावों से पुष्ट भयानक-रस सुननेवालों का हृदय कंपित कर देता है तथा मोक्ष के इच्छुक प्राणियों के लिए पापकर्म से भय का संचार करने वाला है। बीभत्स-रस
घृणित या घृणोत्पादक पदार्थों के दर्शन या श्रवण से बीभत्स-रस उत्पन्न होता है। जुगुप्सा इसका स्थायी-भाव है। यह अहृद्य, अपवित्र, अप्रिय एवं अनिष्ट के दर्शन, श्रवण और परिकीर्तन आदि विभावों से उत्पन होता है। अंग सिकोड़ना, मुख संकुचित करना, थूकना, शरीर के अंगों को हिलाना आदि अनुभावों द्वारा इसका अभिनय होता है। अपस्मार, उद्वेग, आवेग, मोह, व्याधि, मरण आदि इसके संचारी भाव हैं।
अनुयोगद्वार के अनुसार अशुचि पदार्थ, शव, बार-बार अनिष्ट दृश्य के संयोग और दुर्गन्ध से बीभत्स-रस उत्पन्न होता है। निर्वेद-अरूचि या उदासीनता और जीव-हिंसा के प्रति होने वाली ग्लानि उसके लक्षण हैं।२७
'मृगापुत्रीय अध्ययन में वर्णित नरक की वेदनाओं का वर्णन बीभत्सरस को उत्पन्न करने वाला है -
तत्ताइं तंबलोहाइं तउयाइं सीसयाणि या पाइयो कलकलंताई आरसंतो सुभेरवं।। तुहं पियाई मंसाइं खंडाई सोल्लगाणि या खाविओ मि समंसाइं अग्गिवण्णाइं णेगसो।। उत्तर. १९/६८,६९ भयंकर आक्रन्द करते हुए मुझे गर्म और कल-कल करता हुआ
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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