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________________ हरिपालकृत 'संगीत सुधाकर' में ब्राह्म, संभोग तथा विप्रलंभ ये तीन नवीन रस मिलाकर तेरह रस माने गये हैं । १२ ब्राम रस का स्थायी भाव आनंद माना । वह आनंद सांसारिक सभी प्रपंचों से रहित होने के कारण नित्य और स्थिर है। रस- सिद्धान्त का महत्त्व भरत के अनुसार नाटक का प्राण रस है । प्रत्येक व्यक्ति रस की अनुभूति करता है। शुद्धाद्वैतवाद के अनुसार आत्मा परमात्मा के सत्, चित् और आनन्द गुणों से युक्त है। किन्तु जब जीव का आनन्द गुण तिरोहित होता है तब काव्य और कलाओं से उसे जागृत किया जाता है। रस - सिद्धान्त भी काव्य का लक्ष्य आनन्दानुभूति स्वीकार करता है। अद्वैतवाद के अनुसार आत्मा माया के आवरण के कारण जगत के रूपों में भेद का अनुभव करती है, जबकि सभी रूप परमसत्ता से सम्बन्धित हैं। रसानुभूति से माया के आवरण को भूलकर हम विभिन्न रूपों के साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में आत्मा की मुक्तावस्था का नाम ही रस - दशा है। रस-सिद्धान्त जीवन के अच्छे-बुरे सभी पक्षों को काव्य में स्थान देने का पक्षपाती होने के कारण ही वह गांधी, बुद्ध, महावीर आदि की करुणा तथा साम्यवादियों की घृणा दोनों को काव्य में स्थान देने का सामर्थ्य रखता है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार समीक्षा के मानदंड बदलते रहते हैं । किन्तु रस - सिद्धान्त ऐसा मानदंड है जो साहित्य को विभिन्न मतवादों के चक्कर से बचाता हुआ उसकी मूल आत्मा की सुरक्षा करता है । आगम में रस विषयक अवधारणा 'आगमोनाम अत्तवयणं' आप्त वचन आगम होने से यह अध्यात्मपरक ग्रन्थ है और इनमें धर्म व मोक्ष का प्रतिपादन हुआ है । अनुयोगद्वार में नौ रसों का सैद्धान्तिक वर्णन भी उपलब्ध है । स्थानांग टीकाकार के अनुसार जिसका आस्वादन किया जाए वह रस है । १३ चूर्णिकार व वृत्तिकार हरिभद्र - सूरी का अभिमत है कि रस की भांति रसनीय चित्तवृत्तियां भी रस कहलाती हैं। जैसे- सुख वेदनीय और दु:ख वेदनीय कर्मों के रस होते हैं वैसे ही काव्य के रस होते हैं । १४ उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 133 www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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