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सुकुमालं
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सुकुमार शब्द की उत्पत्ति सु उपसर्ग पूर्वक 'कुमार क्रीडायाम्" धातु से 'घ' प्रत्यय करने पर हुई है।
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'सुकुमारं तु कोमलं मृदुलं मृदुः । " मुनि सुकुमार शरीरवाला - क्रीड़ा करने योग्य है। ऐसे मुनि को कठोर तप में संलग्न देख, राजा विस्मय से भर जाता है। यहां 'सुकुमालं' शब्द प्रयोग से मुनि की शारीरिक अविकार्यता के साथ अनाविल रूप-सौन्दर्य का उद्घाटन हो रहा है। सुकुमार शब्द सम्यक् रूप से अविद्या - विनाश के अर्थ का प्रतिपादक भी है- 'सु सुष्ट रूपेण कुं अविद्या मारयतीति सुकुमारः' जो अविद्या कर्ममल रागादि का सम्यक् रूप से विनाश कर चुका है वह सुकुमार है । इस विशेषण से मुनि की अविद्याविहीनता भी अभिव्यंजित है।
अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणो त्ति सव्वलोगम्मि विस्सुए |
उत्तर. २३/५
उस समय भगवान वर्धमान विहार कर रहे थे। वे धर्म-तीर्थ के प्रर्वतक, जिन और पूरे लोक में विश्रुत थे।
यहां वर्धमान के लिए प्रयुक्त विशेषण भगवं, धम्मतित्थयरे, जिणे, विस्सु आदि विमर्शनीय है।
भगवं
भग को धारण करता है वह भगवान है। भग शब्द षडैश्वर्य से
युक्त है
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्योश्चैव षण्णां भग इतीर्यते ।।
भग शब्द से मतुप् प्रत्यय करने पर भगवान बनता है। 'भगं माहात्म्यमस्यास्तीति जो माहात्म्य वाला हो वह भगवान है।
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विशेषावश्यक भाष्य में कहा है
इस्सरियरूवसिरिजसधम्मतयत्ता मया भगाभिक्खा तात्पर्यार्थ - जो ऐश्वर्यवान है, ज्ञान, वैराग्य, शोभा आदि विभूतियों को धारण करता है वह भगवान है। वर्धमान इन गुणों से विभूषित है इसीलिए भगवान विशेषण पद औचित्यूपर्ण है।
उत्तराध्ययन में वक्रोक्ति
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