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हे भवति! जैसे सांप अपने शरीर की केंचुली को छोड़ मुक्त भाव से चलता है वैसे ही पुत्र भोगों को छोड़ कर चले जा रहे हैं। पीछे मैं अकेला क्यों रहूं, उनका अनुगमन क्यों न करूं?
यहां सर्प के धर्म का भृगुपुत्र पर तथा केंचुली के धर्म का भोगों पर आरोप किया गया है। सर्प केंचुली छोड़ने के बाद पुनः उस ओर दृष्टिपात नहीं करता है वैसे ही पुत्र भोगों को छोड़ फिर उसकी ओर नहीं देखते।
भृगुपुत्रों पर सर्प का आरोपण पुत्रों की भागों के प्रति अनासक्तता, निःस्पृहता को प्रकट कर रहा है। विशेषण वक्रता
जहां विशेषण के माहात्म्य से वस्तु या क्रिया की अवस्था-विशेष का बोध हो जिससे उसकी अन्तर्निहित सुन्दरता, कोमलता या प्रखरता प्रकट होकर वह रस या भाव का पोषक बन जाए, वहां विशेषण-वक्रता होती है
विशेषणस्य माहात्म्यात् क्रियायाः कारकस्य वा। यत्रोल्लस्यति लावण्यं सा विशेषण-वक्रता।।२४
वि पूर्वक शिष् धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर निर्मित विशेषण शब्द किसी विशेष्य की विशेषता प्रकट करता है।
उत्तराध्ययन में विशेषण-वक्रताजन्य चमत्कार - नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए। हवइ किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा।। उत्तर. १/४५
मेधावी मुनि विनय-पद्धति को मानकर उसे क्रियान्वित करने में तत्पर हो जाता है। जिस प्रकार पृथ्वी प्राणियों के लिए आधार होती है, उसी प्रकार वह आचार्यों के लिए आधारभूत बन जाता है।
यहां विनीत के लिए विशेषणात्मक संज्ञा 'मेहावी' शब्द का प्रयोग हुआ है। जो मेधा को धारण करे वह मेधावी है। मेधृ संगमे धातु से मेधा शब्द निष्पन्न है। 'मेधते संगच्छते सर्वमस्याम्' जिसमें सब कुछ संगमित हो जाए उसे मेधा कहते हैं। अमरकोषकार ने लिखा है-धीर्धारणवती मेधा'३२ धारणशक्ति का नाम है धी और जो धी को धारण करे वह मेधा है। मेधा संपन्न व्यक्ति मेधावी होता है।
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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