________________
चेतन पर अचेतन के धर्म का प्रयोग
इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया .....उत्तर. २/१
निर्ग्रन्थ-प्रवचन में बाईस परीषह होते हैं, जो कश्यप-गोत्रीय भगवान महावीर के द्वारा प्रवेदित हैं, जिन्हें सुनकर, जानकर, अभ्यास के द्वारा परिचित कर, पराजित कर भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन करता हुआ मुनि उनसे स्पृष्ट होने पर विचलित नहीं होता।
निर्जीव पदार्थ पर कोई, कितना ही प्रहार करे, छेदन-भेदन करे फिर भी वह अविचल, स्थिर रहता है। चेतन पदार्थ में विचलन, अस्थिरता सहज है। मुनि परीषह उपस्थित होने पर भी विचलित नहीं होता-यहां अचेतन के धर्म का चेतन पर आरोप कर कवि उसकी कष्ट-सहिष्णुता, धैर्यधर्मिता को प्रकट कर रहा है। विभावना और विशेषोक्ति अलंकार का यहां सुन्दर प्रयोग हुआ है।
'पंकभूया उ इथिओ' उत्तर. २/१७ स्त्रियां ब्रह्मचारी के लिए दल-दल के समान हैं।
जैसे दल-दल में फंसा जीव अपने लक्ष्य से भटक जाता है वैसे ही स्त्री-रूप दल-दल में फंसा ब्रह्मचारी अपने व्रत की सुरक्षा नहीं कर पाने के कारण कभी त्राण नहीं पा सकता इस तथ्य की अभिव्यंजना करने के लिए यहां 'दल-दल' अचेतन के धर्म का चेतन स्त्री पर आरोप किया गया है। स्त्री से तात्पर्य यहां आसक्ति से है।
'विज्जुसोयामणिप्पभा' २२/७ वह राजकन्या चमकती हुई बिजली जैसी प्रभा वाली थी।
राजीमती का शारीरिक सौन्दर्य अनुपम था-इस बात को प्रकट करने के लिए यहां चमकती बिजली को उपमान बनाकर अचेतन के धर्म का चेतन पर आरोप किया गया है।
आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणि जहा। उत्तर. २२/१०
हाथी पर आरूढ़ अरिष्टनेमि सिर पर चूड़ामणि की भांति बहुत .. सुशोभित हुआ।
94
उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org