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उपरोक्त भाव सभी देवों में नीचे से उपर के देवो में उत्तरोत्तर कम होता
देवों का अल्पबहुत्व तत्त्वों या पदार्थों का संख्या की दृष्टि से भी विचार किया जाता हैं । जैनदर्शन में षडद्रव्यों की दृष्टि से संख्या का निरूपण ही नहीं, किन्तु परस्पर एक दूसरे तारतम्य, अल्पबहुत्व का निरूपण देवों के लिए प्रज्ञापना में उल्लेख हैं
सौधर्म देवों से भवनवासी देव असंख्येयगुण हैं । उनके बत्तीसवें भाग प्रमाण होते हैं । उनके व्यन्तर देव असंख्येयगुण हैं । उनके बत्तीसवें भाग प्रमाण हैं । उनसे ज्योतिष्क देव संख्येयगुण हैं । सबसे कम वैमानिक देव होते हैं ।
देवियों के अल्बबहुत्व का उल्लेख भी जीवाजीवाभिगम सूत्र में हैं- देवियो के भी चार प्रकार हैं
वैमानिक देवियाँ सबसे कम, उनसे भवनवासी देवियाँ असंख्यातगुणी, उनसे व्यंतर देवियाँ असंख्येयगुणी, उनसे ज्योतिष्क देवियाँ संख्येयगुणी होती हैं ।
इसका विस्तार से वर्णन जीवाजीवाभिगम सूत्र में है ।३९
जिस तरह मनुष्यलोक में पैसे वालो और गरीबों का कम ज्यादा का प्रमाण होता हैं । उसी तरह देवलोक में देवों के चार प्रकार में होता हैं । देवताओं की दृष्टि :
दृष्टि का अर्थ है जिनप्रणीत वस्तुतत्त्व की प्रतिपत्ति (स्वीकृति) । दृष्टि तीन प्रकार की है ।
१) सम्यग्दृष्टि, २) मिथ्यादृष्टि और ३) सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि ।
सौधर्म-ईशान कल्प से ग्रैवेयक विमानों के देव तक सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टिमिश्रदृष्टि तीनों प्रकार हैं ।
____ अनुत्तर विमानो के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि वाले नहीं होते ।
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