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की वे अपने इन निवास स्थानों के सिवाय
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६ ३
इस प्रकार से उत्पत्तिस्थानाश्रित चार भेदों का देखा । उसमें विशेषता इतनी
- जंबूद्वीप से असंख्य द्विप-समुद्र जाने के बाद व्यंतर देवों के भी निवास स्थान होते हैं । (वहाँ के व्यंतर देव वहाँ उत्पन्न होते नहीं हैं 1 )
क्र.
१.
२.
ये चारों प्रकार के अपने-अपने स्थान में उत्पन्न हुऐ देव अपने स्थान के बिना, लवणसमुद्र-मेरूपर्वत-वर्षधरपर्वत आदि स्थान में भी रहते हैं । पर उन स्थानों में कदापि जन्म नहीं लेते हैं ।
देवों का शारीरिक वर्णन
३.
- अन्यस्थानों में भी गमनागमन कर सकते हैं ।
१ ) स्थिति :
देवायुकर्म के उदय से प्राप्त देव भव में जीव जितना रहे वह उसकी स्थिति अर्थात् आयुष्य है । स्थिति के भेद है- जघन्य और उत्कृष्ट । जघन्य स्थिति का अर्थ है-कम से कम काल तक रहना और उत्कृष्ट का अर्थ है- अधिक से अधिक काल तक रहना । प्रज्ञापना सूत्र और जीवाजीवाभिगम सूत्र अनुसार विविध प्रकार के देवों की स्थिति (आयुष्य ) निम्न प्रकार से दिखाई गई है _९
४.
-भवनपति आदि देव लवण समुद्रादि निवासों में भी रहते हैं ।
- जंबूद्वीप के उपर की वेदिका तथा अन्य रमणीय स्थल में भी रहते हैं
५.
देवों की स्थिति ( आयुष्य )
जघन्य स्थिति
दस हजार वर्ष
दस हजार वर्ष
देवोंका प्रकार
असुरकुमार देव पुरुष
नागकुमार देव पुरुष
सुर्वणकुमार से स्तनिकुमार
तक (सब भवनपतियो की भी) उपरोक्तानुसार
व्यन्तरो
उपरोक्तानुसार
ज्योतिष्क पुरुषों देव
पल्योपम का आठवां
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उत्कृष्ट स्थिति
कुछ अधिक एक सागरोपम वर्ष देशोन दो पल्योपम वर्ष
उपरोक्तानुसार
एक पल्योपम वर्ष
एक लाख वर्ष अघिक एक
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