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________________ ५२ का निवास(विमान) है, तेरहवें रज्जु में नौ ग्रैवेयक और चौदहवें रज्जु में अनुत्तर देवलोक और सिद्धशीला है ।३२ इन विमानों में कितने देव निवास करते है, विमान कैसे बने हैं, देवों का स्वरूप, विमान कौन से देव वहन करते है आदि का आन्तरिक वर्णन प्रकरण ३ में विस्तार से दिया गया है। उर्ध्वलोक का सबसे अग्रभाग अर्थात् मोक्ष । अब प्रस्तुत है, जैन व इतर मान्यताओं में मोक्ष । मोक्ष जैन परंपरा आत्मा की शुद्धावस्था सिद्धावस्था में स्वीकार करती है । क्योंकि इस अवस्था में सर्व कर्म-मल का क्षय हो जाने से वह मुक्त हो जाता है । जब तक वह कर्म-संयोगी है, तब तक वह संसारी है, छद्मस्थ है । कर्मवियोगी अवस्था ही मुक्तावस्था है। इसी मुक्तात्मा को जैन परंपरा में सिद्ध(मोक्ष) शब्द से अभिप्रेत किया गया है । मोक्ष का स्वरूप और स्थिति : " जब आत्मा शुद्धावस्था को प्राप्त करती है, जो कि सर्व कर्म-मलों से मुक्त होने के पश्चात् की स्थिति है । उस मुक्तावस्था के पश्चात् उसका अवस्थान कहाँ होता है ? वैदिक परंपरा में आत्मा को व्यापक मानते हैं । तथा शुद्धात्मा ब्रह्म में विलीन हो जाती है, ऐसा स्वीकार करते हैं । बौद्ध दर्शन का निर्वाण 'नाश' को सूचित करता है । जैन परंपरा सिद्धिगति का स्वरूप निर्धारित करती है-जब आत्मा सर्व कर्मों का क्षय कर देती है, तब उर्ध्वगमन स्वभाव के फलस्वरूप उर्ध्वगमन करती हुई सिद्धलोक में जाकर स्थित होती है। यह सिद्धभूमि ईषत्प्रागभार पृथ्वी के ऊपर स्थित है। एक योजन में कुछ कम है। ऐसे निषकम्प व स्थिर स्थान में सिद्ध स्थित होते हैं ।३५ ये मोक्ष सर्वार्थसिद्ध इन्द्र के ध्वजदण्ड से १२ योजनमात्र ऊपर जाकर आठवीं पृथ्वी स्थित है । उसके उपरिम और अधस्तन तल में से प्रत्येक तल का विस्तार पूर्व पश्चिम में रूप से रहित (अर्थात् वातवलयों की मोटाई से रहित) एक रज्जु प्रमाण है । वेत्रासन के सदृश वह पृथिवी उत्तरदक्षिण भाग में कुछ कम सात रज्जु लम्बी है । इसकी मोटाई आठ योजन है । यह पृथिवी घनोदधिवात धनवात और तनूवात इन तीन प्रकार की वायु से युक्त है। इनमें से प्रत्येक वायु Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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