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यातनाओं का तो कहना ही क्या ? वहाँ जब खाने के लिए मांगा जाता है 'झक्कम' नाम का थुवर जैसा कांटे वाला खुराक तथा पीने के लिये “हमीम' नाम का उकलता डाबर जैसा गरम पानी मिलता है । असंख्य पीडाकारी पशुओं से, डोकों से दोझखी आत्माओं को त्रास दिया जाता है । सबसे अधिक संताप तो नारकीय अग्नि का है, जो सतत जलती रहती है। वहाँ अग्नि से क्षणमात्र भी राहत नहीं मिलती। इस विषय में मौलाना मुहम्मद अली कहते हैं कि यह नरक का नाशकारक आतिश उस व्यक्ति के पोषित विकार और वासना की अग्नि है । इस अग्नि के लिये कुरान १०४, ६ में कथन है कि वह नारकों के हृदयों पर जलेगी। इसी प्रकार कुरान १७, ७४ में उल्लेख है कि जो इस जगत् में अंधा है, वह दूसरी दुनियां में भी अंधा होगा । यह अंधापन नैतिकता का है । कुरान ६९, ३२३४ में कथन है कि नास्तिकों और दुष्टों को नरक में अग्नि में डालकर ६० हाथ लंबी सांकल से बांधा जाएगा यह सांकल उनके गत जन्म की हवस एवं विकारों का स्थूल स्वरूप ही है ।८२
इनके अनुसार स्वर्ग में फल हैं, तो नरक में काटे हैं । क्यों कि वह फल की नहीं वरन् पाप के बदले की या निष्फलता की भूमि है। नरक की अग्नि को पापियों का 'मौला'(कु. ५, १४), पापियों की 'मां' (कु. १०१, ६) भी कहा
नरक से नीकलने के लिये कथन है कि जब पश्चाताप से नरकवासी पूर्वतः पावन हो जावेगे तब स्वयमेव नरक को छोड़कर नीकल जाएंगे । इस विषय पर आयत की कलमों में ही मतभेद है । कहीं नरक कायम का तो कहीं कायम का नहीं है, ऐसा उल्लेख हैं । (कु. २, १६२, ५.४०-४१, २२.२२, २२.३२,२०) एवं (कु.११.०५) । इसमें यह भी कि मुस्लिम तो अल्लाह की मरजी से नीकल भी जावेंगे, किन्तु अमुस्लिम तो नरक में ही रहेंगे।४
जिस प्रकार स्वर्ग (बहेश्त) सात है उसी प्रकार यहाँ दोझख (नरक) भी सात प्रकार का कहा गया है ।
१. पहले दोझख का नाम है 'जहन्नम'-जहाँ दुष्ट मुस्लिम ही जाते हैं । परंतु यह नरक एक प्रकार का 'हमेस्तगान' (Purgatory) है, क्योंकि वहाँ पाप के प्रमाण में सजा होती है, और अंत में वहाँ के रहीशों का छुटकारा हो जाता
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