________________
२६७
कल्पों के अन्तरकल्प, संवर्तकल्प और महाकल्प आदि अनेक भेद बतलाये गये हैं ।३५
तुलना और समीक्षा बौद्धों ने दस लोक माने हैं-नरकलोक, प्रेतलोक, तिर्यकलोक, मनुष्यलोक और ६ देवलोक ।३६ छह देवलोकों के नाम इस प्रकार हैं-चातुर्महाराजिक, त्रयास्त्रिंश, याम, तुषित, निर्माणरति और परनिर्मितवरावर्ती । प्रेतों को जैनो ने देवयौनिक माना है । अतएव इसे उक्त ६ देवलोकों में अन्तर्गत करने पर नरक तिर्यक्लोक, मनुष्य और देव, ये चार लोक ही सिद्ध होते हैं, जो कि जैनाभिमत चारों गतियों का स्मरण कराते हैं ।
बौद्धों ने प्रेत-योनि को एक पृथक गति मानकर पाँच गतियाँ स्वीकार की हैं । यथा___ नरकादिस्वनामोक्ता गतयः पंच तेषु ताः (अभिधर्मकोश ३, ४)
ऊपर बतलाये देवों में से चार्तुमहाराजिक देव-इन्द्र का, तुषित-लौकान्तिक देवों का, त्रयस्त्रिंश देवों का तथा शेष भेद व्यन्तर-देवों का स्पष्ट रूप से स्मरण कराते हैं।
जैनों के समान बौद्धों ने भी देवों और नारकी जीवों को औपपातिक जन्म वाला माना है । यथा :नारका उपपादुकाः अन्तरा भव देवश्च ।
(अभि. कोश, ३.५) बौद्धों ने भी जैनों के समान नारकी जीवों का उत्पन्न होने के साथ ही उर्ध्वपाद और अधोमुख होकर नरक-भूमि में गिरना माना है । यथा :
एते पतंति निरय उद्धपादा अवंसिर (सुत्तनिपात) (ऊर्ध्वपादास्तु नारकाः) (अभिधर्मकोष १३, १५) ।
तिर्यंचो विषयक हिन्दु-बौद्ध-जैन मान्यता इस प्रकार हिन्दु, जैन और बौद्ध मान्यतानुसार लोक का वर्णन किया गया है । अब मनुष्य एवं तिर्यश्च जीवों के निवास स्थान का वर्णन प्रस्तुत किया जा
_Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org