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प्रकरण ५
स्वर्ग-नरक विषयक अन्य धर्मोकी मान्यताएँ एवं तुलना
वैदिक धर्मानुसार लोक-वर्णन मर्त्यलोक
जिस प्रकार जैन मान्यतानुसार भूगोल का वर्णन है, लगभग उसी प्रकार हिन्दु - पुराणों में भी भूगोल का वर्णन पाया जाता है । विष्णु पुराण के द्वितीयांश के द्वितीयाध्याय में बतलाया गया है कि इस पृथ्वी पर १ जम्बू, २ प्लक्ष, ३ शाल्मल, ४ कुश, ५ क्रौंच, ६. शाक और ७. पुष्कर नाम वाले सात द्वीप हैं । ये सभी चूड़ी के समान गोलाकार और क्रमशः १) लवणोद, २) इक्षुरस, ३) मदिरारस, ४) घृतरस, ५) दधिरस, ६) दूधरस, ७) मधुरस वाले सात समुद्रों से वेष्टित हैं । इन सबके मध्य भाग में जम्बूद्वीप है । इसका विस्तार एक लाख योजन है । उसके मध्य भाग में ८४ हजार योजन ऊँचा स्वर्णमय मेरू पर्वत है । इसकी नींव पृथ्वी के भीतर १६ हजार योजन है । मेरू का विस्तार मूल में १६ हजार योजन है और फिर क्रमशः बढ़कर शिखर पर ३२ हजार योजन हो गया है ।"
इस जम्बूद्वीप में मेरू पर्वत के दक्षिण भाग में हिमवान, हेमकूट और निषध तथा उत्तर भाग में नील, श्वेत और श्रृंगी ये छः वर्ष - पर्वत है । इन से जम्बूद्वीप के सात भाग हो जाते हैं। मेरू के दक्षिणवर्ती निषध और उत्तरवर्ती नील पर्वत, पूर्व-पश्चिम लवण समुद्र तकु १ लाख योजन लम्बे, दो-दो हजार योजन ऊँचे और इतने ही चौड़े हैं । इनमें परवर्ती हेमकूट और श्वेत-पर्वत लवणसमुद्र तक पूर्व-पश्चिम में नव्वे (९०) हजार योजन लम्बे, दो हजार योजन ऊँचे और इतने ही विस्तार वाले हैं । इनसे परवर्ती हिमवान और श्रृंगी - पर्वत पूर्वपश्चिम में अस्सी (८०) हजार योजन लम्बे, दो हजार योजन ऊँचे और इतने ही विस्तार वाले हैं । इन पर्वतों के द्वारा जम्बू द्वीप के सात भाग हो जाते है । जिनके नाम दक्षिण की और से क्रमशः इस प्रकार हैं
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