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________________ २१६ दिये गये हैं। इस जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ एक लाख योजन है । इसकी परिघि (घेराव) तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठावीस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। ___इतने विशाल विस्तारवाले इस जम्बूद्वीप को कोई देव जो बहुत बडी ऋद्धि का स्वामी है, महाद्युति वाला है, महाबल वाला है, महायशस्वी है, महा ईश है अर्थात् बहुत सामर्थ्य वाला है अथवा महा सुखी है अथवा महाश्वास है-जिसका मन और इन्द्रियां बहुत व्यापक और स्वविषय को भलीभांति ग्रहण करने वाली हैं, तथा जो विशिष्ट विक्रिया करने में अचिन्त्य शक्तिवाला है, वह अवज्ञापूर्वक (हेलया) 'अभी पार कर लेता हूँ, अभी पार कर लेता हूँ' ऐसा कहकर तीन चुटुकिया बजाने में जितना समय लगाता है उतने मात्र समय में उक्त जम्बूद्वीप के २९ चक्कर लगाकर वापस आ जावे-इतनी तीव्र गति से, इतनी उत्कृष्ट गति से, इतनी त्वरित गति से, इतनी चपल गति से, इतनी प्रचण्ड गति से, इतने वेग वाली गति से, इतनी दिव्य गति से यदि वह देव दिन से लगाकर छह मास पर्यन्त निरन्तर चलता रहे तो भी रत्नप्रभादि के नरकावासों में किसी को तो वह पार पा सकता है और किसी को पार नहीं पा सकता । इतने विस्तार-वाले ये नरकावास हैं । इसी तरह तमःप्रभा तक ऐसी ही भूमी होती है । सातवीं पृथ्वी में ४ नरकावास हैं । उनमें से मध्यवर्ती एक अप्रतिष्ठान नामक नरकावास लाख योजन विस्तार वाला है अतः उसको पार किया जा सकता है । शेष चार नरकावास असंख्यात कोटि-कोटि योजन प्रमाण होने से उनका पार पाना सम्भव नहीं हैं ।५६ इस तरह उपमान प्रमाण द्वारा नरकावासों का उल्लेख किया गया है । सातों पृथ्वियों का बाहल्य निम्न कोष्टक में दिया गया हैसंख्या पृथ्वीका नाम बाहल्य (योजन) मध्यभाग पोलार योजन) रत्नप्रभा १,८०,०००, १,६८,००० शर्कराप्रभा १,३२,००० १,३०,००० बालुकाप्रभा १,२८,००० १,२९,००० पंकप्रभा १,२०,००० १,१८,००० धूमप्रभा १,१८,००० १,१९,००० * & ॐ 3 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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