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________________ २१५ धूमप्रभा २६५ २९९७३५ ३००००० तमःप्रभा ६३ ९९९३२ ९९९९५ तमस्तमःप्रभा १ मध्य में ४ चारों दिशाओं में ५ पहली नरकपृथ्वी से छठी नरकपृथ्वी तक पृथ्वियों में नरकावास दो प्रकार के हैं-आवलिकाप्रविष्ट और प्रकीर्णक रूप । जो नरकावास पंक्तिबद्ध हैं वे आवलिकाप्रविष्ट हैं और जो बिखरे-बिखरे हैं, वे प्रकीर्णक रूप हैं ।। सातवीं पृथ्वीं में केवल पाँच नरकावास हैं । उनके नाम काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान हैं । अप्रतिष्ठान नामक नरकावास मध्य में है और उसके पूर्व में काल नरकावास, पश्चिम, में महाकाल, दक्षिण में रौरव और उत्तर में महारौरव नरकावास है।५५ इस प्रकार नरक पृथ्वियों में नरकावासों की व्यवस्था है। यहाँ किस नगर में कितने नरकावास किस प्रकार की बनावट के तथा कैसे उनका निर्माण किया गया है, यह स्पष्ट किया है । अब इन नरकावासों की विशालता का उल्लेख किया जा रहा है । इन सातों नरकभूमियों में जो नरकावास हैं, वे किस आकार के हैं ? उनका क्या प्रमाण है ? उनकी विशालता का कथन यहाँ दृष्टान्त के माध्यम से बताया जा रहा है ५. नरकावास की विशालता : इस जम्बूद्वीप में आठ योजन ऊँचा रत्नमय जम्बूवृक्ष है । इसीसे इस द्वीप का यह नामकरण हुआ है । यह जम्बूद्वीप सर्व द्वीपों और सर्व समुद्रों में आभ्यन्तर है अर्थात् आदिभूत है और उन सब द्वीप-समुद्रों में छोट है । क्योंकि आगे के सब लवणादि समुद्र और घातकी-खण्डादि द्वीप क्रमशः इस जम्बूद्वीप से दूगने-दूगने आयाम-विष्कम्भ (प्रमाण) वाले हैं । यह जम्बूद्वीप गोलाकार है, क्योंकि यह तेल मे तले हुए पूए के समान आकृति वाला है । यहाँ 'तेल से तले हुए' विशेषण देने का तात्पर्य यह है कि तेल में तला हुआ पूआ प्रायः जैसा गोल होता है, वैसा ही घी में तला हुआ पूआ गोल नहीं होता । वह रथ के पहिये के समान कमल की कर्णिका के समान तथा परिपूर्ण चन्द्रमा के समान गोल होता है। छोटे देश का प्रमाण समझाने के लिए विविध प्रकार से उपमान उपमेय Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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