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इस प्रकार नैरयिकों की अवगाहना का उल्लेख किया गया है ।३६
२२. नरकगति में गुणस्थान - चौदह गुणस्थान में से नारक में चार गुणस्थान होते हैं । मिथ्यादृष्टि, सासादन-सम्यगदष्टि, सम्यगमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि ये चार गुणस्थान नारकी मे होते हो प्रयाप्त और अप्रयाप्त नारकी जीव मिथ्यादृष्टि और अयंत सम्यगदृष्टि गुणस्थानमें होते है सासादन सम्यगदृष्टि
और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानों में नियम से पर्याप्तक ही होते हैं। ये गुणस्थानवर्ती जीव प्रथम पृथ्वी में (रत्नप्रभा) होते हैं । दूसरी पृथ्वी से लेकर सातवीं पृथ्वी तक रहनेवाले नारकी मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में पर्याप्तक और अपर्याप्तक होते हैं । पर वे (२-७ पृथ्वीके नारकी) सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यगमिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में नियम से पर्याप्तक ही होते हैं । इस प्रकार नैरयिक में गुणस्थान होते हैं ।
कौन से संघयण वाले जीव कौन सी नरक तक उत्पन्न होते है :१. सेवार्त संघयण वाले जीव दूसरी नारक तक जा सकता है । २. कीलिका संघयण वाले जीव तीसरी नरकभूमि तक जा सकता है । ३. अर्धनारय संघयण वाले जीव चौथी नरक भूमि तक जा सकता है । ४. नाराय सधयण वाले जीव पाचवीं नरक पृथ्वी तक जा सकता है । ५. ऋषभ नाराच संघयण वाला जीव छठी नारक तक जा सकता है । ६. वज्रऋषभ नाराच संघयण वाला जीव सातवीं नरकभूमि तक जा सकता
यह सब कथन उत्कृष्ट से है, जघन्य से तो रत्नप्रभा नारकी के प्रथम प्रस्तर में भी जन्म ले सकता है ।३८
एक ही नरक में जीव कितनी बार जन्म ले सकता है :
यदि कोई जीव प्रथम नरक में लगातार जावे तो आठ बार जा सकता है । अर्थात् कोई जीव प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ, फिर वहाँ से निकल कर मनुष्य या तिर्यंच हुआ पुनः प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ । इस प्रकार वह जीव प्रथम नरक में ही जाता रहे तो आठ बार तक जा सकता है। इसी प्रकार द्वितीय नरक में सात बार, तृतीय नरक में छह बार, चौथे नरक में पाँच बार, पाँचवें नरक में चार बार, छठे नरक में तीन बार और सातवें नरक में दो बार तक
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