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कर वह फिर दुसरी बार मारणान्तिक समुद्घात द्वारा समहवत होता है । समवहत हो कर इस रत्नाप्रभापृथ्वी के ३० लाख नारकावसों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है । इसके पश्चात् आहार ग्रहण करता है, परिणमता है और शरीर बांधता है | २९
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१०. नारकों की भूख-प्यास - जीवाजीवाभिगम सूत्र में नैरयिक के भूखप्यास की कल्पना इस प्रकार की है कि यदि रत्नप्रभापृथ्वी के एक नैरयिक के मुख में सारे समुद्रों का जल तथा सारे खाद्यपुद्गलों को डाल दिया जाय, तो भी उस नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो और न उसकी प्यास ही शांत हो सकती है । ऐसी तीव्र भूख-प्यास की वेदना उनको होती है । इसी तरह सप्तम पृथ्वी तक नैरयिकों को भूख-प्यास की वेदना होती है ।
आहारक- अनाहारक- नारकादि त्रस त्रसजीवों में ही उत्पन्न होता है और उनका गमनागमन त्रसनाडी से बाहर नहीं होता, अतएव वह तीसरे समय में नियमतः आहारक हो जाता है । जैसे कोई मत्स्यादि भरतक्षेत्र के पूर्वभाग में स्थित है, वह वहाँ से मरकर ऐरवतक्षेत्र के पश्चिम भाग में नीचे नरक में उत्पन्न होता है तब एक ही समय में भरतक्षेत्र के पूर्व भाग से पश्चिम भाग में जाता है, दूसरे समय में ऐरवत क्षेत्र के पश्चिम भाग में जाता है और तीसरे समय में नरकमें उत्पन्न होता है । इन तीन समयों में से प्रथम दो में वह अनाहारक और तीसरे समय में आहारक होता है । ३१
शब्द :- सतत पीड़ा भोगनेवाले ऐसे नारकों के शब्द परिणाम भी जाने वे विलाप करते हो ऐसे अशुभ - दारूण और सुनते ही दुःख करूणा उपज जावे ऐसे होते हैं ।
हे माता ! हे तात ! हमको छुडाओं हमको बचावो । हे स्वामी ! आपका सेवक हूँ मुझे मत मारो। इस प्रकार निरंतर आर्तस्वर पूर्वक रोने का गिडगिडाना पीडारूप शब्द प्रगट करनेवाला, दीनता, हीनता और कृपणता का भाव भरे हुए शब्द परिणाम होते हैं । ३२
१२. समुद्घात - सात समुदघातों में से नैरयिकों के चार समुद्घात होते हैं - वेदना, कषाय, वैक्रिय, और मारणान्तिक ३३
१३. संज्ञी - नारकी जीव संज्ञी और असंज्ञी दोनो प्रकार के होते हैं । जो गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज) मरकर नारकी जीव होते हैं, वे संज्ञी कहलाते हैं । और
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