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गाय के समान कीड़े, लोहू, चींटी आदि रूप से एकत्व विक्रिया होती है ।१९
इस प्रकार नैरयिक शरीर की विक्रिया होती है । अब उनकी शरीर की विशेषाएँ क्या है ? इसके आगे देखेगें ।
३. नारकियों के शरीर की विशेषताए :___ नारकियों के शरीर अशुभ नामकर्म के उदय के कारण उत्तरोत्तर (आगेआगे की पृथ्वियों में) अशुभ होते हैं । नारकियों की आकृति विकृत होती है ।२० इनका शरीर एकदम कुब्ज होता हैं । जैसे कोई पक्षी के पंख काट डाले हो, उसके समान उनका विरूप होता हैं । ये नारकी विकलांग, हुण्डक संस्थानवाले, नपुंसक होते हैं और देखने में भयावह लगते हैं ।२१
रस :- कडुवी तूंबी और कांजीर के संयोग से जैसा कडुआ और अनिष्ट रस उत्पन्न होता है, वैसा ही रस नारकियों के शरीर में भी उत्पन्न होता है ।
वर्ण :- नैरयिक का वर्ण बुरे काले रंग का होता है। इन नारकियों का शरीर अंधकार के समान काले और रूखे परमाणुओं से बना हुआ होता है ।
गंध :- कुत्ते, बिल्ली, गधे, ऊँट आदि जीवों के मृतक कलेवरों को इकट्ठा करने से जो दुर्गन्ध उत्पन्न होती है, उससे भी उन नारकियों के शरीर की दुर्गन्ध की बराबरी नहीं की जा सकती । अर्थात् इससे भी अधिक भयंकर दुर्गन्ध उनमें में होती है।
स्पर्श :- करोंत और गोखुरू में जैसा कठोर स्पर्श होता है, वैसा ही कठोर स्पर्श नारकियों के शरीर का होता है । उनके शरीर की चमड़ी फटी हुई होने से तथा झुरिया होने से कान्तिरहित कर्कश होते हैं । छेद वाली और जली हुई वस्तु की तरह खुरदरी होती है ।२२ (पकी हुई ईंट की तरह खुदरे शरीर हैं)। इसी प्रकार सातों पृथ्वी में होता हैं । .
१. नारकों की लेश्या- छह प्रकार की लेश्या में से नारकों में पहली तीन अशुभ लेश्या-कृष्ण, नील और कापोत होती है । पहली-दूसरी नरक भूमि में कापोत लेश्या, रत्नप्रभा से अधिक तीव्र संक्लेशकारी लेश्या शर्कराप्रभा में होती हैं । तीसरी नरक के कुछ नैरयिको में कापोतलेश्या और शेष में नीललेश्या, चौथी नरक में भी नीललेश्या, पाँचवी के कुछ नैरयिकों में नीललेश्या और शेष में कृष्णलेश्या, छठी में कृष्णलेश्या और सातवीं नरक में परम कृष्णलेश्या होती है ।२३
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