________________
१८२
प्रेक्षागृह मंडपों के अतीव रमणीय समचौरस भूमिभाग के मध्यातिमध्य देश में एक-एक वज्ररत्नमय अक्षपाटक-मंच है । इसके भी बीचों-बीच आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और विविध प्रकार के मणिरत्नों से निर्मित निर्मल यावत् प्रतिरूप-असाधारण सुंदर एक-एक मणिपीठिका बनी हुई हैं । इसके ऊपर एक-एक सिंहासन रखा हैं । भद्रासनों आदि आसनों रूपी परिवार सहित उन सिंहासन का वर्णन है ।१८८
सौधर्म सभा के अतंर्गत स्तूप-वर्णन प्रेक्षागृह मंडपो के आगे एक-एक मणिपीठिका सोलह-सोलह योजन लम्बी-चौड़ी आठ योजन मोटी हैं । ये सभी सर्वात्मना मणिरत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप है ।।
उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े, समचौरस और ऊँचाई में कुछ अधिक ऊँचे योजन ऊँचे, शंख, अंक रत्न, कुन्दपुष्प, जलकण, मंथन किये हुए अमृत के फेनपुंज सदृश श्वेत, सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ चिकने, सलौने, छुटे हुए, मृष्ट, शुद्ध, निर्मल पंक (कीचड) रहित, आवरण रहित, परछाया वाले, प्रभा, चमक, और उद्योत वाले, मन को प्रसन्न करने वाले, देखने योग्य, मनोहर, असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं ।
इस स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें छत्रातिछत्र यावत् सहस्त्रपत्र कमलों के झूमके सुशोभित होते हैं । स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है । ये आठ योजन लम्बी-चोडी, चार योजन मोटी और अनेक प्रकार के मणि रत्नों से निर्मित, निर्मल है।
प्रत्येक मणिपीठिका के ऊपर, जिनके मुख स्तूपों के सामने हैं ऐसी जिनोत्सेध प्रमाणवाली चार जिन-प्रतिमायें पर्यंकासन से विराजमान हैं-१) ऋषभ, २) वर्धमान, ३) चन्द्रानन, ४) वारिषेण की ।
जिनोत्सेध प्रमाण-अर्थात् ऊँचाई में जिन-भगवान् के शरीर प्रमाण वाली । भगवान् के शरीर की अधिकतम ऊँचाई पाँच सौ धनुष और जघन्यतम सात हाथ की बताई है । वर्णनानुसार वहाँ स्थापित प्रतिमायें पाँच सौ धनुष प्रमाण ऊँची होनी चाहिये, ऐसा टीकाकार का अभिप्राय है ।१८९
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org