SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ मूलतः यह पन्नवणा का प्रसंग है, वहाँ विभिन्न गतियों के स्थान स्वरूप, स्थिति, आदि का वर्णन है ।१७८ एक समाधान यों भी हो सकता है, ऐसे शिलीन्ध्र पुष्पों की ओर सूत्रकार का संकेत रहा हो, सर्वथा सफेद न होकर कुछ-कुछ लालिमायुक्त सफेद हों । भवनवासी देवों का आगमन भगवान् महावीर के पास असुरेन्द्रवर्जित-असुरकुमारों को छोड़कर नागकुमार सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार जाति के भवनवासी-पाताललोक-स्थित अपने आवासों में निवास करने वाले देव प्रकट हुए । उनके मुकुट क्रमशः नागफण, गरूड, वज्र, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी, मगर तथा वर्द्धमानक-शराब-सिकोरा अथवा स्कन्धरोपित-कन्धे पर चढ़ाया हुआ पुरुष के चिह्न से अंकित थे । असुरकुमारों के मुकुट-स्थित चिह्न के वर्णन में यहाँ चूडामणि का उल्लेख है । इसका स्पष्टीकरण यों है-विभिन्न जाति के देवों के अपने-अपने चिह्न होते हैं, जो उनके मुकुट पर लगे रहते हैं । वृत्तिकार ने चिह्नों के सम्बन्ध में सम्बन्ध में निम्नांकित गाथा उद्धृत की है "चूडामणि-फणि-वज्जे गरूडे घड-अस्स-वद्धमाणे य । मयरे सीहे हत्थी असुराईणं मुणसुं चिंधे ॥" [असुर(कुमारदेवों) के चिह्न चूडामणि, फणि, वज्र, गरूड, गृह, अश्व, वर्धमानक, मकर, सिंह तथा हाथ हैं ।] पन्नवणा में भी यह प्रसंग चर्चित हुआ है ।१८० । भवनवासी देवों सुरूप-सुंदर रूप युक्त, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे । उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे । वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली पट्टियाँ एवं अंगद-भुजबन्ध धारण किये हुए थे । उनके मृष्ट-केसर, कस्तुरी आदि से मण्डित-चित्रित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे । वे विचित्र विशिष्ट या अनेकविध हस्ताभरण-हाथों के आभूषण धारण किये हुए थे । उनके मस्तकों पर तरह तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे । वे कल्याणकृत-मांगलिक, अनुपहत या Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy