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सुशोभित हो रहे थे । वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखनेवाली आभरणात्मक पट्टियाँ एवं अंगद - भुजबंध धारण किये हुए थे । उनके मृष्टकेसर, कस्तुरी आदि से मण्डित - चित्रित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे । वे विचित्र विशिष्ट या अनेकविध हस्ताभरण - हाथों के आभूषण धारण किये हुए थे । उनके मस्तकों पर तरह-तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे । वे कल्याणकृत् मांगलिक, अनुपहत या अखंडित, प्रवर- उत्तम पोशाक पहने हुए थे । वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं अनुलेपन-चंदन, केसर, आदि के विलेपन से युक्त थे । उनके शरीर देदीप्यमान थे । वनमालाएँ - सभी ऋतुओं में विकसित होने वाले फुलों से बनी मालाएँ ७६ उनके गलों से घुटनों तक लटकती थीं । उन्होंने दिव्य-देवोचित वर्ण, गंध, रूप, स्पर्श, संघात - दैहिक गठन, संस्थान–दैहिक अवस्थिति, ऋद्धि-विमान, वस्त्र, आभूषण आदि दैविक समृद्धि, द्युति- आभा अथवा युक्ति- इष्ट परिवारादि योग, प्रभा कान्ति अर्चि- दीप्ति, तेज, लेश्या - आत्मपरिणति तदनुरूप प्रभामंडल से दशों दिशाओं को उद्योतितप्रकाशयुक्त, प्रभासित-प्रभा या शोभायुक्त करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप आ-आकर अनुरागपूर्वक - भक्तिसहित तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा की, वन्दन- नमस्कार किया । वैसा कर ( अपने - अपने नामों तथा गोत्रों का उच्चारण करते हुए) वे भगवान महावीर के न अधिक समीप न अधिक दूर सुश्रूषा — सुनने की इच्छा रखते हुए प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़ते हुए उनकी पर्युपासना — अभ्यर्थना करते है ।
प्रस्तुत वर्णन में असुरकुमार देवों की विविध विशेषताओं के साथ-साथ उनके वस्त्रों की भी चर्चा उपलब्ध होती है । उनके वस्त्र शिलीन्ध्र पुष्प जैसे वर्ण तथा द्युति युक्त कहे गये हैं । वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि ने वहाँ 'ईषत् सितानि' कुछ-कुछ सफेद अर्थ किया है । उन्होंने मतांतर के रूप में एक वाक्य भी उद्धृत किया है, जिसके अनुसार असुरकुमारों के वस्त्र लाल होते है । १७७ परम्परा से असुरकुमारों के वस्त्र लाल माने जाते हैं । अतः शिलीन्ध्र पुष्प की उपमा वहाँ घटित नहीं होती, क्योंकि वे सफेद होते हैं !
कुछ विद्वानों ने 'कुछ-कुछ सफेद' के स्थान पर 'कुछ-कुछ लाल' अर्थ भी किया है । पर शिलीन्ध्र-पुष्पों के साथ उसकी संगति कैसे हो !
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