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स्वर्ण से इनकी स्तुपिकायें निर्मित (शिखर) हैं । तथा स्थान-स्थान पर विकसित शतपत्र एवं पुंडरीक कमलों के चित्र और तिलक रत्नों से रचित अर्धचंद्र बने हुए हैं । प्रांगणों में स्वर्णमयी बालुका बिछी हुई है, इनका स्पर्श सुखप्रद है, रूप शोभासम्पन्न, चित्त में प्रसन्नता देनेवाला और दर्शनीय हैं । मुक्तादामों आदि से सुशोभित हैं ।१६६
सूर्याभदेव के विमान का वर्णन विमान के प्रासादावतंसकों का अन्तर्वर्ती भूभाग आलिंग, पुष्कर, मृदंग पुष्कर, सूर्यमंडल, चंद्रमंडल अथवा कीलों को ठोक और चारों ओर से खींचकर सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह आदि के चमड़े के समान अतीव सम, रमणीय है एवं अनेक प्रकार के शुभ लक्षणों तथा आकार प्रकार वाले काले, पीले, नीले, आदि वर्गों की मणियों से उपशोभित है ।
प्रत्येक श्रेष्ठ महल के उस समभूमि भाग के बीचों-बीच वेदिकाओं, तोरणों, पुतलियों आदि से अलंकृत प्रेक्षागृहमंडप बने हुए हैं और उन मंडपो के भी मध्यभाग में स्थित मणिपीठिकाओं पर ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, आदिआदि के चित्रामों से युक्त स्वर्ण-मणि रत्नों से बने हुए सिंहासन रखे हैं ।
सिंहासनों के उपरी भाग में शंख कुंद-पुष्प क्षीरोदधि के फेनपुंज आदि के सदृश श्वेतधवल विजयदूष्य बंधे है और उनके बीचों बीच वज्ररत्नों से बने हुए अंकुश लगे हैं ।
उन अंकुशों में कुंभप्रमाण, अर्धकुंभ प्रमाण जैसे बड़े-बड़े मुक्तादाम (झूमर) लटक रहे हैं । ये सभी दाम सोने के लंबुसकों, मणि रत्नमयी हारोंअर्धहारों से परिवेष्टित हैं तथा हवा के झोकों से परस्पर एक-दूसरे से टकराने पर कर्णप्रिय ध्वनि से समीपवर्ती प्रदेश को व्याप्त करते हुए असाधारण रूप से सुशोभित हो रहे हैं ।
सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार के ऊपर चक्र, मृग, गरूड, छत्र, मयूरपिच्छ, पक्षी, सिंह, वृषभ, चार दांत वाले श्वेत हाथी और उत्तम नाग (सर्प) के चित्र (चिह्न) से अंकित एक सौ आठ, एक सौ आठ ध्वजायें फहरा रही हैं । सब मिलाकर एक हजार अस्सी- एक हजार अस्सी ध्वजायें सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर फहरा रही हैं-ऐसा तीर्थंकर भगवंतो ने कहा हैं ।१६७
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