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________________ १४७ मार से सघन, पुष्ट सुगठित शरीर वाला हो, आत्मशक्ति सम्पन्न, युगपत्, उत्पन्न तालवृक्षयुगल के समान सीधी लम्बी और पुष्ट भुजाओं वाला हो, लांघने-कूदनेवेगपूर्वक गमन एवं मर्दन करने में समर्थ, कलाविज्ञ, दक्ष, पटु, कुशल, मेधावी एवं कार्यनिपुण भृत्यदारक सीकों से बनी अथवा मूठ वाली अथवा बांस की सीकों से बनी बुहारी को लेकर राजप्रांगण, अन्तःपुर देवकुल, सभा, प्याऊ, आरामगृह और उद्यान को बिना किसी घबराहट-चपलता-सम्भ्रम-आकुलता के निपुणतापूर्वक चारों तरफ से प्रमार्जित करता है-बुहारता है—वैसे ही सूर्याभदेव के उन आभियोगिक देव भी संवर्तक वायु की विकुर्वणा करके श्रमण भगवान महावीर के आस-पास चारों और एक योजन-चार कोस के इर्दगिर्द भूभाग में जो कुछ भी घास पत्ते आदि थे उसे उठाकर एकान्त स्थान में ले जाकर फैंककर शीघ्र अपने कार्य पूर्ण करते हैं । अभ्र-बादलों की विकुर्वणा जिस प्रकार कोई एक कार्यकुशल भृत्यदारक-सींचने वाला नौकर जल से भरे एक बड़े घड़े वारक (मिट्टी से बने पात्र विशेष-चाड़े) अथवा जलकुंभ (मिट्टी के घड़े) अथवा जल-स्थालक (कांसे के घड़े) अथवा जलकलश को लेकर आराम-फुलवारी से परब (प्याऊ) को बिना किसी उतावली के सब तरफ से सींचता है, इसी प्रकार से सूर्याभदेव के उन आभियोगिक देवों ने आकाश में घुमड-घुमड़कर गरजने वाले और विजलियों की चमचमाहट से युक्त मेघों की विक्रिया की और विक्रिया करके भगवान महावीर के बिराजने के स्थान के आस-पास चारों और एक योजन प्रमाण गोलाकार भूमि में इस प्रकार से सुगन्धित गंधोदक बरसाया कि जिससे न भूमि जलबहुल हुई, न कीचड़ हुआ, किन्तु रिमझिम-रिमझिम विरल रूप से बूंदाबूदी होने से उड़ते हुए रजकण दब गये । इस प्रकार की मेघ वर्षा करके उस स्थान को निहितरज, नष्टरज, भ्रष्टरज, उपशांतरज, प्रशांत रज वाला बना दिया ।१५७ इस प्रकार अपना कार्य पूर्ण किया । पुष्प-मेघों की रचना इसके पश्चात् आभियोगिक देवों ने तीसरी बार वैक्रिय समुद्घात करके जैसे कोई तरूण कार्यकुशल मालाकारपुत्र एक बडी पुष्पछानदिका (फूलों से भरी टोकरी) पुष्पपटलक (फूलों की पोटली) अथवा पुष्पचंगेरिका (फूलों से भरी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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