________________
१४३
(क) आगमों में प्राप्त विशिष्ट देवताओं का वर्णन
सूर्याभदेव का विस्तार से वर्णन एक प्रकीर्णक आगम ग्रंथ राजप्रश्नीय सूत्र (प्रा. रायपसेणीय सुत्त) एक विशिष्ट आगम ग्रंथ है । उसमें भगवान महावीर के दर्शन-वंदन के लिए आये हुए सूर्याभदेव नामक सौधर्म देवलोक के एक देव का विस्तृत वर्णन मिलता है । सूर्याभदेव और उसके नगर, उसके विमान, उसके निवासस्थान, उसके वैभव, उसके परिवार इत्यादि का अत्यंत रोचक वर्णन वहाँ पर मिलता है । उस वर्णन के आधार से हम इस प्रकार के देवों का क्या वैभव था वह जान सकते है । इस लिए यहाँ पर सूर्याभदेव का विस्तार से वर्णन दिया जा रहा है ।
सूर्याभदेव के सभावैभव सौधर्म विमान में सूर्याभ नामक विमान की सुधर्मा सभा में सूर्याभ देव सिंहासन पर बैठता हैं । उसके साथ चार हजार सामानिक देवों, सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों-सेनाओं, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और दूसरे बहुत से सूर्याभ विमानवासी वैमानिक देव-देवियों सहित अव्याहत निरन्तर नाट्य एवं निपुण पुरुषों द्वारा वादित-बजाये जा रहे तंत्री-वीणा, हस्तताल, कात्यताल और अन्यान्य वाद्यों तथा घनमृदंग-मेघ के समान ध्वनि करने वाले मृदंगो की ध्वनि (आवाज) के साथ दिव्य भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ रहता है । सभा में उपस्थित देव-देवियों का स्वरूप निर्देश
सामानिक देव-आज्ञा और ऐश्वर्य के अतिरिक्त ये सभी देव विमानधिपति देव के समान द्युति, वैभव आदि से संपन्न होते हैं और इनको भाई आदि के तुल्य आदर-सम्मान योग्य माना जाता है ।
___ अग्रमहिषी-कृताभिषेका राजा की पत्नी महिषी और शेष अकृताभिषेका अन्य स्त्रियां भोगिनी कहलाती हैं (या कृताभिषेका नृपस्त्री सा महिषी, अन्या अकृताभिषेका नृपस्त्रियो भोगिन्य इल्युच्यन्ते-अमरकोश द्वितीय कांड, मनुष्यवर्ग, श्लोक ५) अपनी परिवारभूत अन्य सभी पत्नियों में उसकी अग्रता-प्रधानता, मुख्यता-बताने के लिये महिषी के साथ अग्र विशेषण का प्रयोग किया जाता
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org