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से, दिव्य संस्थान से, दिव्य ऋद्धि से, दिव्य द्युति से, दिव्य प्रभा से, दिव्य छाया से, दिव्य अचि (ज्योति) से, दिव्य तेज से, दिव्य लेश्या से दसों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करता है ।।
इस प्रकार ये वैमानिक देव अन्य तीन निकायों के देवों की अपेक्षा अधिक ऋद्धि ऐश्वर्य एवं वैभव सम्पन्न होते हैं । इनके सुखों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है । ये कल्पोपपन्न की अपेक्षा कल्पातीत और अधिक दिव्यता के धारक होते हैं । ये अल्प संसारी होते है, अल्प भवों में मोक्ष सुख को वरण करते
६. देवों के शरीर का वर्णन'३३ :
वर्ण :- सौधर्म-ईशान देवों के शरीर का वर्ण तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभायुक्त होता है ।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म कमल के पराग (केशर) के समान गौर है ।
__ ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले सफेद हैं । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण के हैं ।
अनुत्तरौपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशुक्ल है । इस प्रकार मानव की भांति देवो का भी वर्ण होता है ।
गंध९३४ :- सौधर्म से अनुत्तरौपपातिक तक शरीर का गंध जैसे कोष्ठपुट (लकड़ी के जैसे) आदि सुगंधित होती है, उसमे भी अधिक इष्ट, कान्त गंध इन देवों के शरीर की होती है ।
स्पर्श९३५ :- सौधर्म से अनुत्तरौपपातिक देवों के शरीर का स्पर्श स्थिर रूप से मुदुल, स्निग्ध और मुलायम होता है । ७. निवास-स्थान
वैमानिक देवों का निवास स्थान रत्नप्रभापृथ्वी के अत्याधिक सम-भूभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारकरूप ज्योतिष्कों के बहुत कोटाकोटी योजन ऊपर दूर जा कर सौधर्म से अनुत्तर विमानों के ८४ लाख, ९७ हजार, २३ विमानावास हैं ।१३६
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