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है । तात्पर्य यह है कि अरिहंत परमात्मा की अस्थियाँ होने से वहाँ पर विषय भोग नहीं कर सकता । ७. सूर्य की अग्रमहिषिया'०५ :
ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की चार अग्रमहिषिया हैं । १) सूर्यप्रभा, २) आतप्रभा, ३) अर्चिमाली और ४) प्रभंकरा ।
यहाँ पर सूर्यावतंसक विमान में सूर्यसिंहासन पर वह आरूढ होता है । ग्रहादि की अग्रमहिषिया'०६ -
उसकी चार अग्रमहिषियाँ होती है । १) विजया, २) वैजयंती, ३) जयंति और ४) अपराजिता । उनका परिवार चंद्र इंद्र के सदृश ही होता है।
ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का शेष सब वर्णन इसी प्रकार चन्द्र के समान ही होता है ।
ये सभी विकुर्वणा तो कर सकते हैं किन्तु भोगोपभोगों को भाव से अर्थात् मन से ही भोगने में समर्थ हो पाते हैं, वचन और काया से नहीं । ८. ज्योतिष्क इंद्र देव-देवियों की स्थिति (आयुष्य)
चंद्र-चन्द्र विमान में चंद्र, सामानिक देव तथा आत्मरक्षक देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम के चतुर्थ भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है ।
यहाँ की देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्ष अधिक आधे पल्योपम की है।।
सूर्य–सूर्यविमान में देवों की जघन्य स्थिति १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । यहाँ देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्ष अधिक आधा पल्योपम है ।
ग्रह-देवों की जघन्य स्थिति १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है । यहाँ देवियों की जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थभाग और उत्कृष्ट आधा पल्योपम हैं।
__ नक्षत्र-देवों की जघन्य स्थिति १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। देवियों की जघन्य १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट कुछ अधिक १/४ पल्योपम की हैं।
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